आप सब ने हिन्दू धर्म के पौराणिक कहानी में सुना ही होगा कि किसी भी व्यक्ति के मरने के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए उनकी अस्थि को नदी में विसर्जन करना जरुरी है।
ऐसा कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति के मरने के बाद उसका अंतिम संस्कार नहीं हुआ तो उसकी आत्मा धरती पर कई युग तक भटकती रहेगी।
हर मनुष्य के जीवन में उसका अंतिम संस्कार ही उसका आखिरी पड़ाव होता है। हम अपने प्रिय या किसी के भी अस्थियों का विसर्जन गंगा में करते है| पर क्या आप जानते है अस्थि विसर्जन को गंगा में ही क्यों किया जाता है?
हमारे हिन्दू धर्म के पौराणिक कहानी के अनुसार माँ गंगा को सबसे निर्मल पवित्र नदी माना गया है। गंगा नदी को हिन्दू धर्म में सर्वोच्च माना जाता है। क्योंकि माँ गंगा भगवान शिव की जटाओं में रहते हुए धरती पर अवतरित हुई थी। आइये Asthi Visarjan in Ganga से जुडी बातो को विस्तार से जाने|
Asthi Visarjan in Ganga: गंगा में अस्थियों को विसर्जित करने के पीछे का रहस्य
आत्मा की शांति के लिए होता है अस्थि विसर्जन
मनुष्य के मरने के बाद उसके शरीर का दाह संस्कार किया जाता है। जिसके बाद मनुष्य का शरीर राख हो जाता है। हमारे हिन्दू धर्म के अनुसार माँ गंगा में मनुष्य की अस्थियों को विसर्जित किया जाए तो उसकी आत्मा को शांति मिलती है। और इसी के साथ मनुष्य की आत्मा पुराने शरीर को छोड़ कर नए शरीर में प्रवेश करती है।
गंगा नदी में अस्थि विसर्जन करना शुभ होता है
हिन्दू धर्म के कुछ महान ग्रंथो में अस्थि विसर्जन के कथन को बताया गया है। शंख स्मृति एवं कर्म पुराण में भी गंगा नदी को ही अस्थि विसर्जन के लिए सबसे शुभ माना गया है।
गंगा नदी की पवित्रता को देखते हुए कई सालों तक इसमें अस्थियों की विसर्जित करने का महत्व बना हुआ है।इसके साथ ही सिख धर्म में भी अस्थि विसर्जन किया जाता है।
परन्तु ऐसा जरुरी नहीं है। कि गंगा नदी में ही किया जाए बल्कि किसी भी निर्मल पवित्र नदी का चुनाव कर सकते है। लेकिन हमारे हिन्दू धर्म के शास्त्र के अनुसार मनुष्य के अस्थि विसर्जन को गंगा नदी से जोड़कर ही देखा गया है।
इंसान के पापो का खात्मा करती है गंगा नदी
मनुष्य के अस्थि विसर्जन को हिन्दू धर्म के मुताबिक धार्मिक जगह पर ही विसर्जन किया जाता है| जैसे कि हरिद्वार, प्रयाग आदि जगह पर गंगा का निवास है।
इन जगहों पर बड़े स्तर पर मनुष्य के अस्थि के विसर्जन को पूरे विधि विधान से किया जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार ऐसा माना गया है कि मनुष्य की अस्थियां कई साल तक गंगा नदी में रहती है।
इन अस्थियो के जरिये ही मनुष्य के पाप को गंगा नदी धीरे धीरे ख़त्म करती है। गंगा उनसे जुड़ी आत्मा के लिए नए मार्ग को खोलती है।
जब श्रीहरि से मिलने वैकुंठ पहुंची गंगा
हिन्दू धर्म में पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक एक दिन माँ गंगा भगवान विष्णु से मिलने के लिए वो वैकुंठ गई।
वैकुंठ में पहुंचकर माँ गंगा ने भगवान विष्णु से कहा कि ‘हे प्रभू मेरे जल में स्नान करने से सारे इंसान पापमुक्त हो जाते हैं, लेकिन मेरे जल में स्नान करने वाले लोगों के पापों का बोझ आखिर मैं कैसे उठाउंगी, मुझमें जो पाप समाएंगे उसे मैं कैसे समाप्त करूं ?’
माँ गंगा के सवाल पर भगवान नारायण ने कहा कि जब साधु, संत और वैष्णव जन लोग आकर आपके पवित्र जल में स्नान करेंगे उसके पश्चात आप के ऊपर पड़ने वाले पाप का बोझ अपने आप ही धूल जाएंगे।
क्या है इसके पीछे का वैज्ञानिक आधार
मनुष्य की अस्थियों को गंगा नदी या फिर अन्य किसी पवित्र नदी में विसर्जन करने के पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी है। गंगा नदी की मदद से सैकड़ों मील भूमि की सिचाई होती है और उन्हें उपजाऊ बनाया जाता है। इससे नदी की उपजाऊ शक्ति धीरे धीरे ख़त्म होती है। गंगा नदी में फॉस्फोरस युक्त खाद हमेशा बना रहे इसलिए मनुष्य की अस्थियां को नदियों में ही बहाया जाता है।
जल में विसर्जित करने के पीछे क्या है मान्यता
शास्त्रों के अनुसार मानव का शरीर पंचतत्व (5 तत्व) से मिलकर बना है और इसलिए ही जब किसी की मृत्यु होती है तब शरीर को 5 तत्वों में लीन होना होता है। शरीर के मृत होने पर इसमें स्थित आत्मा आकाश तत्व में विलीन हो जाती है। इसके बाद शरीर को जलाने से अग्नि तत्व, धुएं से वायु और राख से भूमि तत्व में शरीर विलीन हो जाता है। और आखरी में बचे हुए तत्व जल के लिए अस्थियों को गंगा में विसर्जन करते है।