Ganesh Ji Ki Kahani: गणपति आराधना में क्यों मना है तुलसी चढ़ाना

तुलसी हिन्दू धर्म में एक पूज्यनीय पौधा है। हर हिन्दू धर्म को मानने वाले घर में आपको तुलसी का पौधा ज़रूर मिल जाएगा। हर सुबह तुलसी के इस पौधे में जल चढ़ा कर लोग अपने दिन की शुरुआत करते हैं। तुलसी हर भगवान को भी अतिप्रिय है। किसी भी भगवान की पूजा हो तो उनपे तुलसी ज़रूर चढ़ाई जाती है और प्रसाद में भी तुलसी के पत्ते ज़रूर मौजूद होते हैं।

कहा जाता है कि जब तक भगवान की पूजा में भोग के लिए तुलसी के पत्ते को नहीं रखा जाता तब तक भगवान् उस भोग को स्वीकार नहीं करते हैं। इतनी ज्यादा अहमियत होती है तुलसी की हर पूजा विधान में, पर क्या आपको पता है एक ऐसे भी भगवान हैं जिन पर तुलसी बिलकुल भी नहीं चढ़ाई जाती है?

ये भगवान हैं माता पार्वती और महादेव भोलेनाथ के पुत्र भगवान गणेश। भगवान गणेश को तुलसी अप्रिय है। उनकी पूजा विधान में तुलसी के रहने से पूजा को अधूरा या बेअसर माना जाता है। इसलिए उनके श्रद्धालु हमेशा इस बात का ध्यान रखते हैं की उनकी पूजा में तुलसी ना आ पाए।

जिस तुलसी की बाकी सभी भगवानों की पूजा में इतनी अहमियत रहती है उसकी आखिर क्यों गणेश भगवान की पूजा विधान से इतनी दूरी रहती है ? क्या कारण है की अपनी पवित्रता के लिए विख्यात तुलसी को गणेश भगवान क्यों पसंद नहीं करते। इन सब सवालों के पीछे एक कहानी है। आइये जानते हैं Ganesh Ji Ki Kahani

Ganesh Ji Ki Kahani: क्यों तुलसी का उपयोग वर्जित है गणेश पूजा में

गणपति जी बड़े हीं सौम्य और शांत व्यक्तित्व के भगवान हैं, उन्हें गुस्सा काम हीं आता है फिर ऐसा क्या हुआ की उन्होंने तुलसी का उपयोग अपनी पूजा विधान में वर्जित कर दिया। आइये जानते हैं इसके जुड़ी हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में मौजूद प्रचलित कथा।

क्या है कथा ?

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार अपने तरुणावस्था के दौरान भगवान गणेश गंगा नदी के तट पर तपस्या में लीन थे। उस समय पर नवयौवन में कदम रख चुकी कन्या तुलसी विवाह की इच्छापूर्ति की आकांक्षा को लेकर तीर्थ यात्रा पर निकली थी। इसी यात्रा के दौरान देवी तुलसी भ्रमण करते हुए उसी गंगा के तट पर पहुंची जहाँ पर भगवान् गणेश तपस्या कर रहे थे। वहां पर कन्या तुलसी ने तरुण गणेश जी को तपस्या करते हुए देखा।

पुराणों में बताया जाता है कि तपस्या के दौरान युवा और तरुण गणेश जी ने स्वर्ण और मणि के रत्नों से जड़ित अनेक हार पहने, मस्तक पर दिव्य चंदन लगाए, गले में पारिजात पुष्पों के हार तथा साथ हीं कमर पर कोमल रेशम का पीताम्बर पहने हुए रत्न जड़ित सिंहासन पर विराजमान थे।

तुलसी जी भगवान गणेश की तरफ हुई आकर्षित

नवयौवन की उम्र में कदम रख चुकी कन्या तुलसी युवा गणेश के इस भद्र स्वरूप और साज सज्जा को देख कर उनकी तरफ आकर्षित हो गयी। भगवान् गणेश के प्रति आकर्षित हो कर तुलसी ने उनसे ही विवाह करने का मन बना लिया। विवाह सम्बन्धी वार्तालाप करने हेतु तुलसी ने भगवान् गणेश की तपस्या को भंग कर दिया। तुलसी जी के तप भंग करने से भगवान श्री गणेश क्रोधित हो गए और इसे उन्होंने अशुभ भी बताया। तुलसी जी के विवाह की आकांक्षा जान कर भगवान गणेश ने स्वयं को ब्रम्हचारी बताया और उनके द्वारा दिए गए विवाह के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

विवाह प्रस्ताव मना करने पर दिया श्राप

अपने विवाह प्रस्ताव को श्री गणेश द्वारा मना करने से तुलसी जी को बहुत दुःख हुआ और उन्होंने रोष में आकर श्री गणेश को दो विवाह होने का श्राप दे दिया। इस श्राप को सुन कर भगवान् गणेश भी क्रोधित हो गए और क्रोध में आ कर उन्होंने भी देवी तुलसी को एक श्राप दे दिया। भगवान गणेश ने कन्या तुलसी को ये श्राप दिया कि उनका विवाह किसी असुर से होगा।

भगवान् गणेश जी के द्वारा दिए गए इस श्राप को सुनकर तुलसी जी परेशान हो गईं और गणेश जी से क्षमा याचना करने लगीं । इस पर श्री गणेश ने आगे कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण नाम के एक राक्षस से होगा। परन्तु इसके बाद भी तुम भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को अतिप्रिय रहोगी और कलयुग में जगत के लिए जीवन और मोक्ष देने वाली कहलाओगी, परन्तु मेरी पूजा विधान में तुम्हारा किसी प्रकार का उपयोग वर्जित रहेगा। तुलसी चढ़ाना मेरी उपासना शुभ नहीं माना जाएगा।

तो ये थी वो कथा जिसके कारण आज भी कोई भी श्रद्धालु भगवान् गणेश पर भूल कर भी तुलसी नहीं चढ़ाता है। उसी श्राप के कारण आज कलयुग में भी भगवान् गणेश की पूजा में तुलसी पत्र चढ़ाना वर्जित माना जाता है।

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