हरतालिका व्रत को हरतालिका तीज या तीजा भी कहा जाता है। यह व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन मनाया जाता है। हरतालिका तीज के दिन कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियाँ गौरी-शंकर की पूजा अर्चना करती है।
यह पर्व विशेषकर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला त्योहार है। जो की करवाचौथ से भी कठिन माना जाता है। क्यूंकि करवाचौथ में चांद देखने के बाद व्रत तोड़ दिया जाता है जबकि हरतालिका तीज में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है|
इसमें अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत तोड़ा जाता है। मान्यता यह है की इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं।
हरितालिका तीज का व्रत सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने के लिए और अविवाहित युवतियां मन मुताबिक वर पाने हेतु करती हैं। बताया जाता है की सबसे पहले इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव शंकर के लिए रखा था। आइये जानते है Hartalika Teej Puja Vidhi क्या है?
Hartalika Teej Puja Vidhi: हरतालिका तीज की पूजन विधि जानिए
हरतालिका तीज की पूजन सामग्री:-
हरतालिका पूजन के लिए – बेलपत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, तुलसी, केले का पत्ता, अकांव का फूल, जनैव, मंजरी, नाडा, वस्त्र और गीली काली मिट्टी या बालू रेत आदि।
पार्वती मां के लिए सुहाग सामग्री – चूड़ी, मेहंदी, बिछिया, बिंदी, काजल, सिंदूर, कुमकुम, माहौर, कंघी, बाजार में उपलब्ध सुहाग पुड़ा, श्रीफल, अबीर, कलश, घी-तेल, चन्दन, कपूर, दीपक, कुमकुम, पंचामृत (घी, दही, शक्कर, दूध, शहद )
सबसे पहले ‘उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये’ मंत्र का संकल्प ले और मकान को मंडल आदि से सुशोभित कर पूजा सामग्री इकठा कर ले।
विधि :
हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं। प्रदोष काल अर्थात् दिन-रात के मिलने का समय होता है। संध्या के समय स्नान करके शुद्ध व उज्ज्वल वस्त्र धारण कर ले फिर बालू रेत अथवा काली मिट्टी से शिव-पार्वती एवं गणेशजी की प्रतिमा अपने हाथों से बनाएं और पार्वती तथा भगवान शिव शंकर की सुवर्णयुक्त प्रतिमा बनाकर विधि-विधान से पूजा करें।
- इसके उपरांत सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी सामग्री सजा दे और इन वस्तुओं को पार्वतीजी को चढ़ाये।
- फिर शिवजी को धोती तथा अंगोछा चढ़ाये| इसके बाद सुहाग सामग्री किसी ब्राह्मणी को दे और धोती-अंगोछा ब्राह्मण को दे दें।
- इस प्रकार पार्वती तथा शिव का पूजन-आराधना कर हरतालिका व्रत की कथा सुनें।
- इसके बाद सर्वप्रथम गणेशजी की आरती, फिर शिवजी और फिर माता पार्वती की आरती करें।
- फिर भगवान की परिक्रमा करें। रात्रि जागरण करके सुबह पूजा के बाद माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं और ककड़ी-हलवे का भोग लगाएं।
- इसके उपरांत ककड़ी खाकर व्रत तोड़ें। अंत में सारी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी या किसी कुंड में विसर्जित कर दे।
- इसी त्यौहार को लोग बूढ़ी तीज भी कहते हैं। इस दिन सास अपनी बहुओं को सुहागी का सिंधारा प्रदान करती है।
व्रत की अनिवार्यता
इस व्रत को कुमारी कन्यायें या सुहागिन महिलाएं दोनों ही कर सकती हैं लेकिन एक बार व्रत रखने बाद जीवन पर्यन्त इस व्रत को रखना पड़ता है। अगर व्रत रखने वाली महिला गंभीर रोगी हालात में हो तो उसके बदले में दूसरी महिला या उसका पति भी इस व्रत को रख सकने का विधान माना जाता है।