आज यानि 4 जुलाई को Devshayani Ekadashi है। अब चार महीने के लिए देवशयनी एकादशी से विवाह आदि मांगलिक कार्य बंद हो जाएंगे। इसके उपरान्त मांगलिक कार्य नवंबर से आरम्भ हो जायेंगे। मंगलवार से ही चातुर्मास आरम्भ होगा।
Devshayani Ekadashi: जानिए क्या है इसका महत्व
मंदिरों में होंगे अनुष्ठान
देश में कई देव स्थानों पर चातुर्मास अनुष्ठान होंगे। पंडितो के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की ग्यारस को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं पर देवशयनी एकादशी को ‘पद्मनाभा’ भी कहते हैं। देवउठनी एकादशी के उपरान्त 31 अक्टूबर के बाद अब मांगलिक कार्य आरम्भ होंगे। भगवान विष्णु की पूजा चतुर्मास की इस अवधि में विशेष फलदायी होती है।
पिछले साल से कम है विवाह के मुहूर्त
पंडितों के मुताबिक, विवाह आदि मांगलिक कार्यों का सिलसिला चार महीने के लिए रुक जायेगा। वैसे तो देवउठनी ग्यारस के साथ विवाह शुरू हो जाते हैं। लेकिन इस साल 11 अक्टूबर से गुरु का तारा अस्त होगा जो 6 नवंबर तक रहेगा। जिसके कारण नवंबर में विवाह के मुहूर्त काफी कम हैं।
इस बार विवाह का पहला मुहूर्त 23 नवंबर को है। विवाह के सात ही नवंबर-दिसंबर में शुद्ध मुहूर्त दिए गए हैं। जबकि भिन्न -भिन्न पंचांगों में विवाह के मुहूर्त भी भिन्न -भिन्न दिए गए हैं। पंडितो के अनुसार, इस साल विवाह की संख्या देवउठनी ग्यारस के बाद पिछले साल से आधे हैं। ऐसी स्थिति गुरु का तारा अस्त होने के कारण बन रही है।
मंदिरों में होगी महापूजा
आज देवशयनी एकादशी (Ashadhi Ekadashi) के उपलक्ष्य में सुबह से ही विष्णु मंदिरों में पूजन और महाआरती का सिलसिला जारी रहेगा। पूजन का आयोजन भी वैष्णव मंदिरों में किया जायेगा। इंदौर स्थित वेंकटेश मंदिर छत्रीबाग में सुबह के समय पूजन-अभिषेक के बाद शाम को तुलसी अर्चना भी की जाएगी। इसके साथ ही गोष्ठी प्रसाद भी प्रदान किया जायेगा। साथ ही पुष्टिमार्गीय संप्रदाय के मंदिरों में भी पूजन अभिषेक और महाआरती की जाएगी।
भगवान विष्णु सोते है इन चार महीने
कहा जाता है कि असाढ़ शुक्ल की एकादशी या Devshayani Ekadashi से अगले चार महीने के लिए भगवान विष्णु सोने के लिए पाताल लोक में चले जाते हैं और सूर्य दक्षिणायण हो जाता है। इसके उपरान्त कार्तिक शुक्ल की एकादशी को भगवान विष्णु निंद्रा से जागते हैं और पाताल लोक से बाहर आकर सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं। इसके साथ ही शुभ कार्य आरम्भ हो जाते है। 31 अक्टूबर तक सृष्टि के संचालन का कारोभार भगवान शिव पर होता है। इस दौरान गणेश चतुर्थी, श्रावण मास, और शारदीय नवरात्र जैसे महापर्व आते हैं।
विवाह के अलग-अलग मुहर्त
पंडितों के अनुसार, इस बार अलग-अलग पंचांगों में अलग-अलग मुहूर्त बताये गए है। वैसे नवंबर माह में 23, 28 और 29 नवंबर तथा दिसंबर में 3, 4, 10, 11 दिसंबर तिथियां विवाह के लिए शुभ बताई जा रही है।
पंडितो के अनुसार, 14 दिसंबर से मलमास आरम्भ हो जाएगा जो 13 जनवरी तक रहेगा। शुक्र का तारा दिसंबर में ही अस्त हो जाएगा जो 3 फरवरी तक रहेगा। जिस कारण जनवरी में विवाह के मुहूर्त पंचांगों में नहीं दिए गए हैं।
व्रत का है महत्त्व
कहा जाता है कि देवशयनी Ekadashi Vrat के लिए श्रेष्ठ है। इसके अतिरिक्त चतुर्मास व्रत को यदि श्रद्धालु अनुशासन में रहकर करते हैं तो सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
राजा बलि भगवान विष्णु के लिए देते है पहरा
पुराणों के अनुसार राजा बलि से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राजा बनाया था, तो बलि ने उनसे इच्छा व्यक्त करते हुए अनुरोध किया था कि आप यहां आकर निवास करे। जब भगवान विष्णु पाताल लोक में सोते हैं तो राजा बलि उनके लिए पहरा देते हैं।