हिंदी कैलेण्डर के अनुसार एक पूरे साल में कुल 24 एकादशी आती है परन्तु जी साल एक अधिकमास होता है उस साल इन एकादशियों की संख्या बढ़ कर 26 हो जाती है। इस साल भी एक अधिकमास हिंदी कैलेण्डर में था इस कारण से इस साल एकादशियों की संख्या 26 रही ।
सभी एकादशियों का हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा महत्व होता है और इसमें विश्वास रखने वाले श्रद्धालु इस दिन भगवान विष्णु की आराधना करते हैं साथ हीं उपवास भी रखते हैं। कुछ लोग इस दिन एक समय शुद्ध आहार का सेवन कर के भी भगवान् की पूजा करते हैं ।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है की इस दिन व्रत रखने और पूजा तथा दान करने पर व्रत करने वाले श्रद्धालु के जीवन में सुख-समृद्धि आएगी और अंत समय में उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी।
इन सभी 24-26 एकादशियों में से एक एकादशी ऐसी मानी जाती है जिस दिन व्रत रख कर श्रद्धालु साल भर की सभी एकादशियों के जितना पुण्य कमा सकता है। यह एकादशी हिंदी कैलेण्डर के ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष में आता है । इसका नाम निर्जला एकादशी होता है। आइये जानते हैं Nirjala Ekadashi के बारे में विस्तार से।
Nirjala Ekadashi: जाने निर्जला एकादशी व्रत की कथा और महत्व
निर्जला एकादशी का व्रत बाकी एकादशी व्रत से थोडा कठिन माना जाता है साथ हीं इसे करने से पूरे साल भर के एकादशी का पुन्य मिल जाने की मान्यता भी है । आइये सबसे पहले जानते हैं निर्जला एकादशी की पौराणिक कथा
निर्जला एकादशी कथा: Nirjala Ekadashi Story
एक बार की बात है सभी पांडवों को धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिये महर्षि वेदव्यास ने एकादशी व्रत करने का संकल्प करवाया। इस संकल्प के बाद पांडव भाइयों सहित माता कुंती और द्रोपदी भी एकादशी का व्रत आस्था भाव से करने लगे परन्तु भीम जो की बहुत सारा खाना खाने के लिए काफी प्रसिद्ध थे अर्थात भीम बहुत ही ज्यादा विशालकाय तथा ताकतवर तो थे तो उन्हें भूख भी बहुत ज्यादा लगती थी। भीम अपनी भूख बर्दाश्त नहीं कर पाते थे इसलिये उनके लिये हर महीने में दो दो दिन उपवास रखना बहुत मुश्किल था।
परन्तु जब पूरा पांडव परिवार भीम पर एकादशी व्रत करने के लिये दबाव डालने लगा तो वे इसके लिए कोई आसान युक्ति ढूंढने लग गए जिससे उन्हें ज्यादा भूखा भी नहीं रहने पड़े और उन्हें उपवास का पुण्य भी प्राप्त हो जाये। अपने पेट पर छाये इस संकट के बादल का निदान भी उन्होंने महर्षि वेदव्यास से ही पूछा।
भीम ने महर्षि वेदव्यास से पूछा की हे पितामह मेरे परिवार के सभी लोग एकादशी का व्रत रखते हैं और उपवास करते हैं और मुझ पर भी ऐसा करने का दबाव बनाते हैं लेकिन मैं धर्म-कर्म, पूजा-अर्चना, दान आदि कर सकता हूं लेकिन उपवास करना मेरे बस की बात नहीं हैं। मेरे पेट के मध्य वृक नाम की एक जठराग्नि है जिसे शांत रखने के लिए मुझे हर कुछ देर पर भोजन की जरुरत पड़ जाती है अत: मैं इस भोजन के बिना बिलकुल भी नहीं रह सकता हूँ।
भीम की परेशानी सुन कर व्यास जी ने कहा, भीम यदि तुम स्वर्ग और नरक की सत्यता को मानते हो तो तुम्हारे लिये भी यह एकादशी व्रत का करना जरूरी है। महर्षि के ऐसा कहने पर भीम की चिंता और ज्यादा बढ़ गई, उसने व्यास जी फिर कहा, हे महर्षि मेरी पीड़ा को समझे और ऐसा व्रत बताएं जिसका उपवास साल में एक बार करने पर मुझे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। इस पर वेदव्यास ने भीम को कहा कि हे वत्स ऐसा व्रत और उपवास है पर वो बड़ा ही कठिन होता है, हाँ ये बात है की इसे रखने से तुम्हें साल भर के सभी एकादशियों के उपवास का पुण्य प्राप्त हो जायेगा।
उन्होंने भीम से कहा कि इस व्रत उपवास के पुण्य के बारे में स्वयं विष्णु अवतार भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें बताया है। तुम इस व्रत को ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को उपवास रख सकते हो। इसमें आचमन तथा स्नान के अलावा जल का सेवन भी वर्जित होता है। अत: इस एकादशी के तिथि पर अगर निर्जला उपवास रखकर भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा कर के अगले दिन स्नान करने के बाद ब्रहाम्ण को दान-दक्षिणा दे और भोजन करवाकर फिर स्वयं भोजन करें। इस प्रकार इस व्रत को कर के तुम्हें केवल एक दिन के व्रत उपवास से ही साल भर के सभी एकादशी व्रत उपवासों जितना पुण्य मिल जाएगा। महर्षि वेदव्यास के इस बारे में बताने के बाद भीम ने यह उपवास रखा और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।
भीम के द्वारा यह उपवास रखे जाने की वज़ह से ही निर्जला एकादशी को भीमसेन एकादशी और पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
निर्जला एकादशी की पूजन विधि
-
- हिन्दू धर्म में बाकी सभी व्रत और उपवासों में निर्जला एकादशी को सर्वश्रेष्ट माना जाता है इसलिये इसे पूरे आस्था और यत्न के साथ किया जाना चाहिए ।
- इस व्रत को करने से पहले भगवान विष्णु से यह अर्चना करनी चाहिये कि प्रभु आपकी दया दृष्टि हमेशा मुझ पर बनी रहे और मेरे समस्त पाप का नाश हो जाए।
- निर्जला एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है और इसके लिए एकादशी के दिन सूर्योदय से द्वादशी के दिन सूर्योदय तक नाहीं अन्न और नाहीं जल का सेवन किया जाता है।
- इस व्रत में जरुरतमंदों को अन्न, वस्त्र, जूती आदि का अपनी क्षमता के अनुसार दान भी करना चाहिए।
- इस में आप चाहें तो जल से भरे एक घड़े को भी वस्त्र से ढक कर उसका दान कर सकते है और क्षमतानुसार आप स्वर्ण का भी दान कर सकते है।
- ब्राह्मणों या फिर किसी गरीब जरुरतमंद को मिष्ठान आदि भी देना चाहिये।
- इस दिन व्रत के दौरान ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण भी अच्छा माना जाता है।
- इन सब के साथ निर्जला एकादशी व्रत की कथा भी पढ़नी या सुननी चाहिये।
- द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद पूरे विधिपूर्वक ब्राह्मण को भोजन करवाएं और इसके बाद हीं आप अन्न और जल ग्रहण करें।
- इस व्रत को करने वाले को ध्यान रखना चाहिये कि गलती से भी स्नान या आचमन के अलावा जल ग्रहण भी वो न करें । पूजन के दौरान आचमन में भी सिर्फ नाममात्र का जल ही ग्रहण करना चाहिये।
आज के इस लेख में आपने निर्जला एकादशी व्रत की कथा और पूजन विधि के बारे में पढ़ा। आप भी इस व्रत में उपवास रख कर इसका फल प्राप्त कर सकते हैं।