मनुष्य जीवन के लिए शास्त्रों के अनुसार कुछ नियम बनाये गए है जिनका पालन करना सभी के लिए आवश्यक माना गया है। हिन्दू रीती रिवाज के मुताबिक, हर व्यक्ति को अपने जीवन में Solah Sanskar का पालन करना चाहिए। यह संस्कार अलग-अलग समय पर व्यक्ति के जन्म से मृत्यु तक किए जाते हैं। आइए जानते है हिन्दू धर्म के सोलह संस्कार-
हिन्दू धर्म के सोलह संस्कार: जानिए क्यों है महत्वपूर्ण?
विवाह संस्कार (दो व्यक्तियों का मिलाप)
विवाह संस्कार सबसे महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। इसमें वर और वधू दोनों का विवाह कराया जाता है। इसके बाद दोनों साथ रहकर धर्म के पालन का संकल्प लेते है। विवाह के माध्यम से सृष्टि के विकास में योगदान दिया जाता है। विवाह संस्कार से व्यक्ति पितृऋण से मुक्ति पा लेता है।
गर्भाधान संस्कार (नए शिशु का पृथ्वी पर आना)
गृहस्थ जीवन में प्रवेश के बाद पहले कर्त्तव्य के रूप में इस संस्कार को मान्यता दी गई है। शास्त्रों के अनुसार, मनचाही संतान प्राप्त होने के लिए Garbh Sanskar किया जाता है। यह एक ऐसा संस्कार है जिससे योग्य, गुणवान और आदर्श संतान की प्राप्ति होती है। इस संस्कार से वंश वृद्धि होती है।
पुंसवन संस्कार (गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की कामना)
यह संस्कार गर्भस्थ शिशु के बौद्धिक और मानसिक उन्नति के लिए किया जाता है। पुंसवन संस्कार करने से स्वस्थ, सुंदर गुणवान संतान की प्राप्ति होती है।
सीमन्तोन्नयन संस्कार(गर्भस्थ शिशु के शिक्षा का प्रयास )
गर्भ के चौथे, छठवें और आठवें महीने में यह संस्कार किया जाता है। यह इस महीने में इसलिए किया जाता है क्योंकि इस समय गर्भ में पल रहा बच्चा सीखने के योग्य हो जाता है। उसमें अच्छे गुण, स्वभाव और कर्म का ज्ञान आए, इसके लिए मां उसी प्रकार आचार-विचार, रहन-सहन और व्यवहार करती है।
जातकर्म संस्कार (जन्म उपरांत शिशु के स्वाथ्य की देखभाल)
इस संस्कार को बालक का जन्म होते ही करने से शिशु के कई प्रकार के दोष दूर होते हैं। इस संस्कार में शिशु को शहद और घी चटाया जाता है। साथ ही वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है ताकि बच्चा स्वस्थ और दीर्घायु हो।
नामकरण संस्कार (शिशु को नाम देना)
नामकरण संस्कार शिशु जन्म के बाद 11वें दिन किया जाता है। बच्चे का नाम ब्राह्मण द्वारा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तय किया जाता है।
निष्क्रमण संस्कार (बच्चे के कल्याण की प्रार्थना)
निष्क्रमण का अर्थ होता है बाहर निकालना। यह संस्कार जन्म के चौथे महीने में किया जाता है। हमारा शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश जिन्हें पंचभूत कहा जाता है से बना है। इसलिए पिता इन देवताओं से बच्चे के कल्याण की प्रार्थना करते हैं। साथ ही कामना करते हैं कि शिशु दीर्घायु रहे और स्वस्थ रहे।
अन्नप्राशन संस्कार (भोजन ग्रहण की शुरुआत)
बच्चे के दांत निकलने के समय यानी 6-7 महीने की उम्र में यह संस्कार किया जाता है। इस संस्कार के बाद बच्चे को अन्न खिलाने की शुरुआत हो जाती है।
मुंडन संस्कार (शिशु के बालों का त्याग)
जब एक वर्ष, तीन वर्ष, पांचवे या सातवे वर्ष की आयु में बच्चे के बाल उतारे जाते हैं जिसे मुंडन संस्कार कहा जाता है। माना जाता है कि इस संस्कार से बच्चे का सिर मजबूत होता है तथा बुद्धि तेज होती है। साथ ही शिशु के बालों में चिपके कीटाणु नष्ट होते हैं जिससे शिशु को स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
विद्या आरंभ संस्कार(विद्या की शुरुआत)
इस संस्कार के द्वारा शिशु को योग्य शिक्षा प्रदान की जाती है। शिशु को शिक्षा के प्रारंभिक स्तर की जानकारी दी जाती है।
कर्णवेध संस्कार (कानो का छेदन)
इस संस्कार में कानो का छेदन किया जाता है। इसके दो कारण बताये गए हैं, एक- आभूषण पहनने के लिए। दूसरा- कान छेदने से एक्यूपंक्चर होता है। इससे मस्तिष्क तक पहुंचने वाली नसों में रक्त का प्रवाह सही तरीके से होता है। इससे श्रवण शक्ति में वृद्धि होती है और कई रोगों से बचाव भी होता है।
उपनयन या यज्ञोपवित संस्कार (जनेऊ धारण करना)
उप मतलब पास और नयन मतलब ले जाना। गुरु के पास ले जाने का अर्थ है उपनयन संस्कार। आज भी उपनयन संस्कार की परंपरा चली आ रही है। जनेऊ यानि यज्ञोपवित में तीन सूत्र होते हैं। ये तीन देवता- ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रतीक हैं। इस संस्कार द्वारा शिशु को बल, ऊर्जा और तेज की प्राप्ति होती है।
वेदारंभ संस्कार (वेदों के ज्ञान का अध्ययन)
शास्त्र में ज्ञान से बढ़कर दूसरा कोई प्रकाश नहीं बताया गया है। यह संस्कार में मनुष्य जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस संस्कार द्वारा व्यक्ति को वेदों का ज्ञान दिया जाता है।
केशांत संस्कार (केशो का अंत)
केशांत संस्कार का अभिप्राय है केश यानी बालों का अंत करना, मतलब उन्हें समाप्त करना। विद्या अध्ययन से पहले भी केशांत किया जाता है। कहा जाता है गर्भ से बाहर आने के बाद बालक के सिर पर माता-पिता के दिए बाल ही रहते हैं। इन्हें काटने से शुद्धि होती है। शुद्धि शिक्षा प्राप्ति के पहले आवश्यक है, जिससे मस्तिष्क ठीक दिशा में कार्य करें। पहले गुरुकुल से शिक्षा प्राप्ति के उपरान्त केशांत संस्कार किया जाता था।
समावर्तन संस्कार (व्यावहारिक जीवन में प्रवेश )
समावर्तन संस्कार से अभिप्राय है फिर से लौटना। आश्रम या गुरुकुल से शिक्षा पर्पट करने के बाद व्यक्ति को पुनः समाज में लाने के लिए समावर्तन संस्कार किया जाता था। इसका अभिप्राय है ब्रह्मचारी व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक रूप से जीवन के संघर्षों के लिए परिपक्व किया जाना।
अंत्येष्टी संस्कार (देह को अग्नि को समर्पित करना)
अंत्येष्टि संस्कार इसका मतलब है अंतिम संस्कार। शास्त्रों के अनुसार इंसान की मृत्यु यानि देह त्याग के उपरांत मृत शरीर अग्नि को समर्पित किया जाता है। आज भी शवयात्रा के आगे घर से अग्नि जलाकर ले जाई जाती है। इसी से चिता जलाई जाती है। मतलब है विवाह के बाद व्यक्ति ने जो अग्नि घर में जलाई थी उसी से उसके अंतिम यज्ञ की अग्नि जलाई जाती है।