Navratri Kanya Puja: जानिए नवरात्र में क्यों करते हैं कन्या पूजन
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार नवरात्रि के दिनों में कन्याओं को भोजन करना व कन्या पूजन करने का विशेष महत्व होता है। सभी धर्मो में ऐसा बताया गया है कि बच्चें भगवान का हीं एक रूप होते है। नवरात्रि के दिनों में सभी छोटी कन्याओं को माँ का रूप बताया जाता है।
नवरात्रि के अष्टमी और नवमी के दिन तीन से नौ साल तक की सभी कन्याओं का पूजन किया जाता है और उनको भोजन भी करवाया जाता है। फिर उसके बाद उन सभी कन्याओं को कुछ दान दक्षिणा आदि देने से मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं।
यह सभी कन्या छल, कपट से दूर होती हैं तथा पवित्रता की प्रतिमूर्ति होती हैं । शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि नवरात्रि के नौ दिन में माँ दुर्गा पृथ्वी लोक पर निवास करती है और सबसे पहले कन्याओं में ही विराजित होती हैं ।
अष्ठमी का दिन कन्या पूजन करने के लिए बहुत ही श्रेष्ठ रहता है। आप सभी लोग नवरात्रि के दौरान अष्ठमी के दिन सभी कन्याओं की पूजा कर उन्हें भोज करा सकते हैं। आज के इस लेख में हम आपको Navratri Kanya Puja के महत्व और इससे मिलने वाले पुण्य के बारे में बताने जा रहे हैं।
Navratri Kanya Puja: कन्या पूजन का महत्व व पूजन विधि
कन्या पूजन का महत्व
- हिन्दू धर्म में शास्त्रों के अनुसार एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो कन्या की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन कन्याओं की पूजा अर्चना से धर्म अर्थ व काम, चार कन्याओं की पूजा से राज्यपद, पांच कन्याओं की पूजा से विद्या, छ: कन्याओं की पूजा से छ: प्रकार की सिद्धि, सात कन्याओं की पूजा से राज्य, आठ कन्याओं की पूजा से संपदा और नौ कन्याओं की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।
- भविष्यपुराण तथा देवीभागवत पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों के अनुसार नवरात्र के व्रत के अंत में कन्या पूजन करना बहुत आवश्यक माना गया है। कन्या पूजन के विधान के बगैर नवरात्र का व्रत अधूरा माना जाता है।
- कन्या पूजन के विधान के समय एक और बात का ध्यान रखना चाहिए। ऐसी मान्यता है की कन्याओं को भोजन कराने के साथ हीं एक लांगूर अर्थात लड़के को भी भोजन कराते हैं और पूजन भी करते हैं । कहा जाता है कि इस लांगूर के पूजन के बगैर कन्या पूजन अधूरा माना जाता है।जिस प्रकार कन्यायों को माता का रूप माना जाता है उसी प्रकार इस एक लड़के को भैरो जी का रूप माना जाता है।
कन्या पूजन की विधि
- नवरात्रि के दिनों में कन्या भोज के लिए 3 से लेकर 9 साल तक की कन्याओं का हीं पूजन करना चाहिए तथा उनको भोजन करवाना चाहिए। इससे कम या फिर ज्यादा उम्र वाली कन्याओं की पूजा करना वर्जित होता है।
- सभी कन्याओं को भोजन में उबले हुए चने, हलवा, पूरी, खीर, पूआ व फल आदि सात्विक और पवित्र भोजन खिलाना चाहिए, क्योंकि ऐसा माना जाता है की कन्या बोज के दौरान आप कन्याओं के रूप में साक्षात माँ दुर्गा को भोग लगा रही होती हैं ।
नौ कन्याओं को करवाए भोजन
- आप भी अगर नवरात्रि के दौरान कन्या भोज करवाते है तो यह याद रखे कि कन्या भोज में कन्याओं की संख्या का नौ होना बहुत ही उत्तम होता है। अगर नौ कन्या नहीं है तो आप दो कन्या को ही भोजन करवा कर उनकी पूजा कर सकते हैं ।
- आप सभी को इस बात का पूरा पूरा ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि जितनी भी कन्या को आप भोज और पूजा के लिए बुला रहे है उन सभी कन्याओं की आयु 10 साल से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
- आप अपनी इच्छा के अनुसार नवरात्रि के नौ दिनों में किसी भी दिन या फिर नवरात्रि के अंतिम दिन भी कन्या भोज के लिए सभी कन्याओं को आमंत्रित कर सकते हैं । सभी कन्याओं को आसन पर एक पंक्ति में बैठा कर उनके हाथों में मौली धागा बांधे, माथे पर रोली से तिलक करें और भोजन करवाएं। भोजन के पश्चात कन्याओं को दान दक्षिणा देना ना भूलें। इस दौरान कन्याओं को लाल चुन्नी और चूड़ियाँ भी चढ़ाई जाती है।
इस मंत्र का उच्चारण करें
भोजन के बाद कन्याओं के पैर धुलाकर विधिवत कुंकुम से तिलक करने के बाद दक्षिणा देकर हाथ में फूल लेकर यह नीचे बताये गए मंत्र का उच्चारण करना चाहिए:-
- मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्।
- नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्।।
- जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि।
- पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते।।
मंत्रोच्चार के पश्चात कन्याओं को विदा करते समय आशीर्वाद के रूप में उनसे थपकी लेने की भी मान्यता है।
कन्या पूजन के आरम्भ से जुड़ी कहानी
माता वैष्णों ने एक बार अपने एक अनन्य भक्त जिसका नाम था पंडित श्रीधर की अगाथ भक्ति से खुश होकर उसकी लाज तो बचाई हीं साथ हीं साथ पूरी दुनिया को अपने होने का प्रमाण भी दे दिया। मान्यताओं के अनुसार जम्मू कश्मीर राज्य के कटरा क्षेत्र से करीब 2 किलोमीटर दूर बसा हंसाली नाम के एक गांव में श्रीधर रहता था। कोई संतान ना होने के कारण वो बहुत दुखी था। एक बार की बात है जब उसने नवरात्रि पूजन का आयोजन किया और इस पूजनोत्सव में उसने कुँवारी कन्याओं का अपने घर बुला कर पूजा किया। इस दौरान माता वैष्णों खुद भी इन कन्याओं के मध्य उपस्थित रहीं। कन्या पूजन के बाद सारी कन्याएं वापिस लौट गई परन्तु माता वैष्णों वहीं रह गईं। माता ने अपने भक्त श्रीधर से कहा की सभी को भंडारे के लिए निमंत्रित कर आओ। श्रीधर ने माता की बात मान कर पूरे गांव को आमंत्रित कर आया। इस भंडारे में बहुत सारे लोग आये। माता की मदद से भंडारा अच्छे से हुआ और इन सब के फलस्वरूप भक्त श्रीधर को संतान सुख की प्राप्ति हुई। तभी से कन्या पूजन का ये विधान शुरू हुआ और आज भी इस विधान के माध्यम से माता के भक्त अपनी मनोकामना पूरी करते हैं।
इस लेख में आपने पढ़ा नवरात्रि में किये जाने वाले कन्या पूजन के महत्व, विधि तथा इससे जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में। आप भी नवरात्रि के दौरान उपर्युक्त विधि से कन्या पूजन कर के पुण्य के भागी बन सकते हैं।