Kailash Parvat Mystery: इस रहस्यमयी पर्वत पर प्रकृति करती है ॐ का जाप

कैलाश पर्वत रहस्यमय पहाड़ों में से एक है| यह तिब्बत में स्थित एक पर्वत श्रेणी है। यह एक तीर्थ स्थान है, और इसको लेकर मान्यता है की यह अलौकिक शक्तियों से भरा पड़ा है। इस पर्वत को शिव का वास माना जाता है।

इसके पश्चिम तथा दक्षिण में मानसरोवर तथा राक्षस ताल हैं। यहाँ से ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलुज नदियां निकलती है। कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई है इस शिखर की आकृति विराट् शिवलिंग की तरह है।

माना जाता है की भगवान् शिव अपने परिवार के साथ कैलाश पर्वत पर रहते है| कैलाश पर्वत को गणपर्वत और रजतगिरि भी कहा जाता है| प्राचीन साहित्य में उल्लिखित मेरु भी यही है| इस प्रदेश की यात्रा व्यास, भीम, कृष्ण, दत्तात्रेय आदि ने की थी।

पौराणिक मान्यताओ के अनुसार शिव और ब्रह्मा आदि देवगण, मरीच आदि ऋषि एवं रावण भस्मासुर आदि ने यहाँ तपस्या की थी| आइये हम Kailash Parvat Mystery से जुडी सारी बाते जानते है|

Kailash Parvat Mystery: कैलाश पर्वत का महत्त्व और उसका दर्शन

Kailash Parvat Mystery

कैलाश पर्वत की उचाई

कैलाश पर्वत की ऊचाई 6,638 मीटर है। इसकी यह उचाई अन्य शिखरों से ज्यादा नहीं है| कैलाश पर्वत दुनिया का सबसे ऊचा पर्वत नहीं है फिर भी लोग इसकी चोटी तक नहीं पहुंच पाते। साल भर यह  पर्वत बर्फ से ढाक रहता है।

कहा जाता है की कैलाश पर चढ़ना मना है लेकिन 11 सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी मिलारेपा ने इस पर चढाई की थी।

कैलाश में चारों ओर है एक अलौकिक शक्ति

वैज्ञानिको के अध्यन से पता चला की कैलाश पर्वत के चारो और एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है। जहाँ पर तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ टेलिपेथी संपर्क करते है।

बर्फ पिघलने पर आती है मृदंग की आवाज

श्रदालुओं का मानना है की जब यहाँ पर बर्फ पिघलती है तो मृदंग की आवाज सुनाई देती है। यह भी कहा जाता है की अगर कोई इंसान मान सरोवर में स्नान कर लेता है तो वह ‘रुद्रलोक ‘ पहुंच सकता है।

ठण्ड वाली जगह पर है गर्म पानी के झरने

उत्तर की ओर दूर तक कैलाश पर्वत के हिमाच्छादित धवल शिखर का रमणीय दृश्य दिखता है। दर्रा समाप्त होने पर तीर्थपुरी नामक स्थान है जहाँ गर्म पानी के झरने हैं। इन झरनों के आसपास चूनखड़ी के टीले हैं।

आश्चर्य यह है ही ये जगह बर्फ से बिछी होने के बावजूद भी यहाँ पर गर्म पानी के झरने देखने को मिलते है। बताया जाता है कि भस्मासुर ने इसी जगह तप किया और यहीं वह भस्म भी हुआ था।

दो प्रकार की झीले मानसरोवर झील और राक्षस झील

कैलाश पर्वत पर मानसरोवर झील और राक्षस झील देखने को मिलती है| माना जाता है की ये दोनों झीलें सौर और चंद्र बल को  दर्शाती है जिसका सम्बन्ध सकारात्मक और नकारात्मक उर्जा से है। इन झीलों को अगर आप दक्षिण की तरफ से देखते हैं तो आपको स्वस्तिक चिन्ह दिखाई देगा।

मानसरोवर झील में आप जीवन को देख सकते है। जबकि अगर आप राक्षस झील को देखेंगे तो वहा पर आपको कोई पक्षी तक नहीं दिखाई देगा। क्यूंकि वहां पर कोई जीवन नहीं है।

मान्यता है की रावण ने इस ताल में तप किया था। जिस वजह से इसका पानी खारा है और मानसरोवर का पानी मीठा है। जबकि इन दोनों की दुरी में ज्यादा अंतर नहीं है। स्थानीय तिब्बती लोग इसके पानी को विषैला मानते है एक किंवदंती यह भी है कि नीलकमल केवल मानसरोवर में ही खिलता और दिखता है। मान्यता है कि ब्रह्ममुहुर्त के समय देवतागण मानसरोवर में स्नान करते हैं। ग्रंथों के अनुसार, सती का हाथ इसी स्थान पर गिरा था, जिससे यह झील बनी है|

कैलाश से निकलती है ॐ की ध्वनि

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कैलाश पर शिवजी का स्थायी निवास माना जाता है। इसलिए इस स्थान को 12 ज्येतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का जब मेल होता है तो ऐसा लगता है मानो की ॐ की ध्वनि सुनाई दे रही हो।

गंगा का स्थान है कैलाश पर्वत

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बताया जाता है की यह जगह कुबेर की नगरी है। इसी स्थान से गंगा महाविष्णु के करकमलों से निकलकर कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहाँ पर भगवान् शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में भर लिया था। इसके बाद ही गंगा धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित होती है।

बर्फ द्वारा निर्मित ॐ आकृति

इस पर्वत को आदि कैलाश, बाबा कैलाश, लिटिल कैलाश और जोंगलिंगकोंग के नाम से भी जाना जाता है इस पर्वत के बारे में कहा जाता है की यहाँ पर देखने पर बर्फ से बने के दर्शन होते है| इसलिए इसे ॐ पर्वत भी कहते है। यह पर्वत पश्चिमी नेपाल के दरचुला जिले और उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित हिमालय की पर्वत माला में आता है|

कई पर्वतारोहियों ने कैलाश पर फतह हासिल करनी चाही

कई पर्वतारोहियों ने कैलाश की चोटी पर फतह हासिल करने की कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हो पाए| पर्वत पर चढाई के लिए सबसे पहला प्रयास भारतीय ब्रिटिश टीम ने किया था। इस टीम ने निर्णय लिया था की ये लोग धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करते हुए पर्वत की चोटी  से 30 फ़ीट पहले ही रुक जायेगे।

लेकिन परिस्थिति ऐसी बनी की मौसम के ख़राब होने के कारण उन लोगो को 660 फ़ीट पहले ही रुकना पड़ा और वहां से ही वापस लौट आये। 8 अक्टूबर 2004 में एक बार फिर से पर्वतारोहियों की टीम ने पर्वत पर चढाई करने की ठानी। परन्तु इनको भी चोटी के कुछ मीटर पहले ही रुकना पड़ा और पर्वत का सम्मान करते हुए वापस लौट आये|

देवी पार्वती ने किया था कैलाश पर घोर तप 

यहाँ डोलमाला और देवीखिंड ऊँचे स्थान है। उनकी ऊँचाई 5,630 मीटर है। ड्रोल्मा से नीचे बर्फ़ से सदा ढकी रहने वाली ल्हादू घाटी में स्थित एक किलोमीटर परिधि वाला पन्ने के रंग जैसी हरी आभा वाली झील, गौरीकुंड है। यह कुंड हमेशा बर्फ़ से ढंका रहता है, लेकिन तीर्थयात्री यहाँ बर्फ़ हटाकर इस कुंड के पवित्र जल में स्नान करना नहीं भूलते।

कहा जाता है की इसी झील में माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी।

सूर्य की पहली किरण कैलाश पर

इस पर्वत की एक आश्चर्य जनक बात यह है की जब कैलाश पर्वत पर सूर्य की पहली किरण पड़ती है तो यह पूर्ण रूप से सुनहरा हो जाता है।

You may also like...