Guru Purnima: गुरु पूर्णिमा की महत्ता है अनमोल, इस उपलक्ष पर लें अपने गुरु का आशीर्वाद

गुरु पूर्णिमा एक ऐसा दिन होता है जिसे हिन्दू ही नही बल्कि सिख, बौद्ध और जैन आदि धर्म के लोग भी बहुत हर्ष और उल्लास के साथ मनाते है। शास्त्रों में गुरु शब्द का अर्थ बहुत अच्छा बताया गया है। इसमें गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या अज्ञान और रु का का अर्थ बताया गया है- अंधकार को रोकने वाला अर्थात् गुरु ही एक ऐसा इंसान है जो मानव जीवन में फ़ैल रहे अंधकार को मिटा सकता है।

Guru Poornima के दिन हर शिष्य अपने गुरु का अभिवादन करता है उनका धन्यवाद करता है उन्हें बताता है बिना गुरु के उसका जीवन अंधकारमय है। हर शिष्य के जीवन में गुरु की अपनी एक अलग ही जगह होती है। बिना गुरु के हम अपने जीवन को सही मार्गदर्शन नही दे सकते। दुनिया में एक मुकाम हासिल करने के लिए गुरु की भूमिका बहुत अहम् होती है। फिर चाहे वो खेल हो या शिक्षा जगत हो बिना गुरु के सफलता की ऊचाई तक नही जाया जा सकता।

Guru Purnima के इस पवित्र दिन को प्राचीन काल से ही हमारे धर्म में बहुत शुभ माना गया है। प्राचीन काल में जब शिष्य गुरुकुल में रहकर शिक्षा अर्जित करते थे तो गुरु पूर्णिमा के दिन श्रद्धा भाव से अपने गुरु का पूजन करते थे उनकी सेवा करते थे और अपने गुरु का धन्यवाद करने के लिए इस दिन को मनाते थे।

वैसे तो सभी के जीवन में कोई न कोई गुरु अवश्य होता है पर गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुमहाराज यानि की भगवान दत्तात्रेय की भी विशेष पूजा अर्चना की जाती है क्योंकि भगवान दत्तात्रेय में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी तीनों के रूप है इसलिए इन्हें इस संसार का गुरु माना जाता है। जानते है Guru Purnima.

Guru Purnima: जाने क्यों होती है गुरु पूर्णिमा पर गुरुओं की पूजा

Guru Purnima

गुरु पूर्णिमा का महत्त्व (Guru Purnima History)

आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा मनायी जाती है। इसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु के अवतार महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। उनका नाम कृष्ण द्वैपाय व्यास था क्योंकि उन्होंने चारो वेदों की रचना की थी इसलिए उन्हें वेद व्यास के नाम से भी जाना जाता है। वेद व्यास जी ने महाभारत जैसे आदि कई महान ग्रंथो की रचना की है। कौरव और पांडव भी उन्हें गुरु का दर्जा देते थे गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। व्यास जी को आदिगुरू भी कहा जाता है। पुराणों के रचनाकार होने के कारण महर्षि वेदव्यास जी को प्रथम गुरु होने का सम्मान मिला है। कहा जाता है जैसे बादल की घटा सभी पर बिना किसी भेदभाव के बरसती है उसी तरह इस दिन गुरुओं की कृपा बिना किसी भेदभाव के हर किसी पर बरसती है। कोई भी शिष्य चाहे जहाँ भी हो वो इस पावन गुरु पूर्णिमा के दिन को मनाना नही भूलता है। इस दिन शिष्य के गुरु चाहे कितनी भी दूर क्यों न हो हर शिष्य इस दिन अपने गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करता ही है। गुरु पूर्णिमा को बाकि सभी पूर्णिमाओ में से सबसे श्रेष्ठ माना गया है जब की गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु में आती है तो इस दिन चाँद की रौशनी बादलों की वजह से धरती पर कम पड़ती है पर इस दिन गुरुओं का प्रकाश ही इस पावन धरती को रोशन करता है। गुरु पूर्णिमा के अगले दिन से सावन के पवित्र महीने की भी शुरुआत होती है।

गुरु पूर्णिमा के दिन क्या करे ?

गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्यों को अपने गुरु की पद पूजा ज़रुर करनी चाहिए ऐसा करने से उनकी बुद्धि का विकास होता है और गुरु की कृपा उन पर सदैव बनी हुई रहती है।
गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु के पूजन मात्र से ही जगत के पालनहार तीनों देव भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है।
धनुर्धर अर्जुन के गुरु द्रोणाचार्य से लेकर वर्तमान के महशूर सचिन तेंदुलकर के गुरु रमाकांत अचरेकर जैसो ने गुरु की शक्ति को कायम रखा है और इन शिष्यों ने भी अपने गुरुओं का मान-सम्मान सदा कायम रखा है।

बौद्ध धर्म में महत्व

बौद्ध धर्म में इस दिन का अपना एक अलग ही महत्व है। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध ने उत्तर प्रदेश के सारनाथ में प्रबुद्धता प्राप्‍त करने के बाद अपना पहला उपदेश दिया था। इस तरह बौद्ध धर्म में इस दिन को खास मान लिया जाता है।

जैसे सूर्य के ताप से तप्ती हुई भूमि को वर्षा के जल से शीतलता और फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, ऐसे ही गुरुचरण में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है। इस पवित्र दिन का जितना भी बखान किया जाये कम ही है। योग परंपरा में इस दिन का एक अलग महत्व है। इस दिन भगवान् शिव को पहला गुरु माना गया तथा उनके योग ज्ञान के प्रसार को सप्तऋषियो द्वारा इसी दिन शुरू किया गया था।

जैन धर्म में महत्व

जैन परम्पराओं के मुताबिक, इस दिन “चौमास” की शुरुआत होती है अर्थात चार महीने बरसात के मौसम की शुरुआत होती है I जैन धर्म में गुरुओं को बहुत ऊंचा स्थान दिया जाता है और कहा जाता है कि साधु हो जाना सिद्धों या फिर अरिहंतों की प्रथम सीढ़ी की तरह होती है और साधु ही गुरु बनकर दीक्षा देने के काबिल होता है।

गुरु पूर्णिमा के दिन अगर आपने गुरु से कोई गुरु नाम लिया हुआ हो तो आपको उस गुरु मंत्र का जाप भी करना चाहिए वैसे तो हर दिन गुरु मंत्र का जाप करना चाहिए पर इस दिन विशेष रूप से गुरु मंत्र और गुरु का आह्वान करना चाहिए ऐसा करने से आप पर गुरु की कृपा सदा बरसती रहेगी साथ ही आपके घर में खुशहाली का माहौल भी बना रहेगा।

Guru Purnima Information

गुरु पूर्णिमा के पावन दिन पर भगवान साईं की भी विशेष पूजा करनी चाहिए। क्योंकि एक गुरु ही भगवान को पाने का मार्ग बताता है। एक सच्चा गुरु अपने शिष्य को सदा धर्म के रास्ते पर चलने के लिए अग्रसर करता है।

आज के लेख में आपने गुरु पूर्णिमा की महत्ता के बारे में विस्तार से पढ़ा। आने वाले गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरु की पूजा ज़रूर करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।

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