Maha Shivratri 2018 Special: शिवलिंग पर दूध चढ़ाने के धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

भगवान शिव दूसरे सभी भगवानों से बिलकुल अलग नजर आते हैं। भगवान शिव अपने शरीर पर सुगन्धित इत्र की जगह चिता की भस्म लगाते हैं और गर्दन में फूल-मालाओं की जगह विषधर सर्पों को धारण करते हैं। शिव इकलौते ऐसे भगवान हैं जिनके लिंग रूप की पूजा पूरी दुनिया करती है।

महाशिवरात्रि आने वाली है। इस पर्व को हिंदुओं के सबसे बड़े पर्वों में से एक भी माना जाता है। इस पर्व पर श्रद्धालु शिवालयों और मंदिरों में स्थित शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, भांग, जल और दूध चढ़ाकर पूजा अर्चना करते हैं।

महाशिवरात्रि के अलावा सावन के महीने में भी शिव पूजा का अपना विशेष महत्व होता है। सावन के पुरे महीने भक्त शिव जी की पूजा अर्चना करते हैं। इस पूजा में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु शिवलिंग का दूध से अभिषेक करते हैं।

माना जाता है दूध के अभिषेक से भगवान शिव अति प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सारी मनोकामनाएं भी पूरी करते हैं। जहाँ शिवलिंग पर दूध के अभिषेक का धार्मिक महत्व है वहीं इसका वैज्ञानिक महत्व भी बहुत है। आइये जानते हैं इन्ही धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व के बारे में।

जानिए शिवलिंग पर क्यों चढ़ाया जाता है दूध

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भगवान शिव का दूध से अभिषेक करना एक बड़ा ही पुण्य का काम माना गया है। शिवलिंग पर भक्तों द्वारा जलाभिषेक करने के विधान के साथ ही दूध से अभिषेक किये जाने की भी परम्परा का पुरे देश भर में शिवभक्त बड़ी आस्था और विश्वास से पालन करते है। महाशिवरात्रि और सावन के महीने में तो शिवलिंग पर दूध का अभिषेक तो बिलकुल अनिवार्य ही माना जाता है, लेकिन फिर प्रश्न उठता है कि आखिर सिर्फ शिवलिंग पर दूध का अभिषेक क्यों किया जाता है, और किसी पर क्यों नहीं? वास्तव में इसके दो मुख्य कारण हैं, पहला धार्मिक और दुसरा वैज्ञानिक। आइये जानते हैं इन्हीं कारणों के बारे में विस्तार से-

दुग्ध अभिषेक का धार्मिक कारण

शिवलिंग पर दुग्धाभिषेक के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। आइये जानते हैं उसी कथा के बारे में।

बहुत समय पहले एक बार देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उस समुद्र मंथन के फलस्वरूप चीज़ें समुन्दर से बाहर निकली, इन्हीं में से एक था विष। विष के बाहर निकलने से पूरी पृथ्वी पर इसका बुरा असर दिखने लगा, इसकी घातकता के कारण पेड़ पौधे मुरझाने लगे, जीव जंतुओं में एक तरह की व्याकुलता छाने लग गई। ऐसे विकट समय में सभी देवता भगवान शंकर के समक्ष इस समस्या के निदान के लिए पहुंचे। सभी देवताओं ने भगवान् शंकर से विष का पान करने की प्रार्थना की और भगवान् शिव ने भी देवताओं को निराश ना करते हुए उस हलाहल विष का पान कर लिया और संसार को इस व्याकुलता से मुक्ति दिलाई। पर जब भगवान् शिव ने विष का पान किया तो उस घातक विष के कारण शिव जी का गला नीला पड़ने लगा।

ऐसे वक़्त में सभी देवताओं ने उनसे हलाहल विष की घातकता के असर को काम करने के लिए शीतल अमृतप्राय दूध का पान करने का आग्रह किया। इसपर भोलेनाथ ने दुग्धपान करने से पहले दूध से उसके सेवन की अनुमति मांगी। दूध के द्वारा अनुमति मिलने के पश्चात भगवान शिव ने दूध का पान किया। दुग्धपान से घातक विष का असर काफ़ी हद्द तक कम हो गया, और जो विष बाकी बाहर रह गया उसे उनके गले में लटके सर्पों ने पिया।

तो आखिर कार इस प्रकार समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष से इस पूरी सृष्टि की रक्षा की जा सकी। शिव के शरीर के अंदर समा कर विष के सारे अनिष्टकारी प्रभावों को नगण्य कर देने के कारण हीं दूध भगवान शंकर को अतिप्रिय है, इसी कारण से इस घटना के बाद से ही शिव पूजा के दौरान शिवलिंग पर दूध चढाने की परम्परा की शुरुआत हुई जो आज भी चली आ रही है।

दुग्ध अभिषेक का वैज्ञानिक कारण

ऐसा अक्सर देखा गया है कि भारत की अधिकतर परम्पराओं तथा प्रथाओं से जुड़ा कोई न कोई सटीक वैज्ञानिक कारण ज़रूर होता है, और यही वो वजह है जिसके कारण ये परम्पराएं तथा प्रथाएं अनेक सदियों से प्रचलित हैं और लोगों द्वारा निभाई भी जा रहीं हैं।

शिव पूजा के दौरान शिवलिंग पर दूध से अभिषेक करने के पीछे भी ऐसे ही वैज्ञानिक कारण जुड़े हुए है। मुख्य तौर पर सावन के महीने में मौसम में बदलाव देखे जाते है और इसी के कारण लोगों में बहुत तरह की बीमारियां होती हैं और संक्रमण होने की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं। सावन महीने के दौरान बरसात के मौसम में वात-पित्त तथा कफ़ से जुड़ी तमाम तरह की बीमारियां फैलती हैं। इन बीमारियों का संक्रमण दूध के कारण ज्यादा होता है। ऐसे में इस मौसम में आप दूध का सेवन कर के इन मौसमी तथा संक्रामक बीमारियों से ग्रषित ना हो जाएँ इसलिए दूध पीना कुछ दिनों के लिए बंद कर देना चाहिए।

सावन के महीने में दूध का कम सेवन आपके वात-पित्त तथा कफ जनित समस्याओं से बचाव का सबसे आसान उपाय है इसलिए प्राचीन काल में आम लोग सावन माह में दूध को शिवलिंग पर चढ़ा देते थे।

इसके अलावा भी एक वैज्ञानिक कारण इससे जुड़ा है। सावन के महीने में बरसात के मौसम के कारण यत्र-तत्र हर जगह अलग अलग तरह के घास-फूस उग जाते हैं इनमे से कुछ घास-फूस जहरीले भी होते हैं। इस घास-फूस का सेवन मवेशी भी कर लेते हैं, और इससे मवेशियों का दूध भी जहरीला बन जाता है। इस कारण भी इस मौसम में दूध के इन अवगुण को हरने के लिए ही पुराने जमाने में सारा दूध शिवलिंग पर अर्पित करने का चलन सामने आया और ऐसा कर के आम लोग इस मौसम की अलग अलग बीमारियों के साथ-साथ दूध के अवगुणों से ग्रसित होने से बच पाए।

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