Santoshi Maa Vrat Katha – जानिए माँ संतोषी के व्रत का महत्व
संतोषी माता अपने सभी भक्तो की इच्छाओं को पूरा करती है। इनके नाम से ही यह ज्ञात होता है की यह माँ सब को संतोष प्रदान करती है।
माता संतोषी विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पुत्री है| यह माँ अपने भक्तों के सभी दुखो को दूर कर उन्हें प्रसन्न्ता, सुख और शांति प्रदान करती है|
संतोषी माता की पूजा अर्चना उत्तरी भारत की महिलाए ज्यादातर करती है। हिन्दू धर्म में ऐसा कहा गया है कि जो भी माँ संतोषी का व्रत पूरे श्रद्धा भाव के साथ करता है। उसके परिवार में माता सुख, शांति और समृद्धि का आर्शीवाद देती है|
माँ संतोषी, माँ दुर्गा का ही एक स्वरुप है। माँ दुर्गा के समान वे कोमल और शांत रूप में रहती है। माँ संतोषी कमल के फूल पर विराजती है। जिससे ज्ञात होता है संसार भले ही कठोर, स्वार्थी और भ्रस्ट लोगो से भरा हो, माँ संतोषी अपने भक्तों के ह्रदय पर शांत और सौम्य रूप से निवास करती है। आज हम आपको Santoshi Maa Vrat Katha बता रहे है|
Santoshi Maa Vrat Katha – कैसे व्रत द्वारा महिला की मनोकामना पूर्ण हुई
संतोषी माता के व्रत को 16 शुक्रवार तक पूरे विधि विधान के साथ करना चाहिए। जो भी इंसान इस व्रत को करता है, माँ उसकी मनोकामना जरूर पूर्ण करती है| Maa Santoshi Vrat Katha इस प्रकार है:-
माँ संतोषी की कथा इस प्रकार है कि एक ग्राम में एक बुढ़िया रहती थी। उस बुढ़िया का एक ही पुत्र था। उस बुढ़िया ने अपने पुत्र का विवाह एक लड़की से करवा दिया। जब वह लड़की बुढ़िया की बहू बनकर घर आई। तब वह बुढ़िया अपनी बहु से अपने घर का सारा काम करवाती थी और अपने बहू को ठीक से खाना भी नहीं देती थी।
इन सब परेशानियों को देखने के बावजूद भी उस बुढ़िया का लड़का अपनी माँ से एक शब्द भी कुछ नहीं बोल पाता था। उस लड़के की पत्नी दिनभर घर का काम करती रहती थी। उपले थापती, रोटी रसोई करती, बर्तन साफ करती, कपड़े धोती रहती थी। इन सभी कामों को करते करते उसका पूरा दिन बीत जाता था।
पति का परदेश जाना
उस बुढ़िया का लड़का एक दिन काफी सोच विचार करके अपनी माँ से बोला -`मां, मैं परदेस जा रहा हूं.´ लड़के की यह बात सुनकर उसकी माँ बहुत खुश हुई। और अपने पुत्र को परदेश जाने की अनुमति दे दी। वह लड़का परदेश जाने के पहले अपनी पत्नी से मिलता है|
वह उसके पास जाकर बोलता है। कुछ दिनों के लिए मै परदेश जा रहा हू। तो तुम अपनी कुछ निशानी मुझे दे दो। उसकी पत्नी ने बोला हे स्वामी मेरे पास आप को देने के लिए कुछ भी निशानी नहीं है। उसकी पत्नी इतना सा कहाकर अपने स्वामी के चरण में गिर गई और रोने लगी। इस दौरान उसकी पत्नी के हाथ गोबर से सने हुए थे जो उसके स्वामी के जूते पर अपनी छाप छोड़ देते है।
सास का बहू पर अत्याचार
पुत्र के परदेश जाते ही उसकी माँ अपनी बहु पर और अत्याचार करने लग गई। एक दिन उसकी बहु बहुत ही दुखी मन से मंदिर गई। मंदिर में उसने देखा कि बहुत सी महिलाएं पूजा कर रही है। यह देखकर उसने उन महिलाओं से पूछा कि आप सभी लोग किस देवी की पूजा और व्रत कर रही है?
वहां पर मौजूद महिलाओं ने उसे व्रत के बारे में बताया और कहा कि हम सभी लोग माँ संतोषी का व्रत और कथा कर रहे है। इस व्रत को जो भी इंसान करता है, उस इंसान के सभी प्रकार के दुःख और कष्टों का निवारण हो जाता है।
उन महिलाओं ने इस व्रत के बारे में बताते हुए कहा कि शुक्रवार के दिन नहा धोकर एक लोटे में शुद्ध जल, गुड़, चने का प्रसाद माँ संतोषी को सच्चे मन से चढ़ाकर और पूजा अर्चना करना चाहिए। इस व्रत को करते समय भूल से भी खटाई का सेवन नहीं करना चाहिए और न ही किसी और को देना चाहिए। साथ ही दिन में एक समय भोजन करना चाहिए।
संतोषी माता की कृपा
व्रत विधान सुनकर उस बुढ़िया की बहू भी प्रति शुक्रवार को संयम से व्रत करने लगी| तब माँ संतोषी की कृपा से कुछ दिनों के बाद उस लड़की के पति का पत्र आया और बाद में कुछ पैसे भी आ गए।
वह प्रसन्न मन से फिर व्रत करने लग गई और मंदिर में जाते हुए अन्य महिलाओं से बोला कि `संतोषी मां की कृपा से हमें पति का पत्र तथा रुपया आया है.´ अन्य सभी स्त्रियां भी श्रद्धा से व्रत करने लगीं. बहू ने कहा- `हे मां! जब मेरा पति घर आ जाएगा तो मैं तुम्हारे व्रत का उद्यापन करूंगी.´
संतोषी माता का दर्शन
एक दिन माँ संतोषी ने उस बुढ़िया के बेटे के स्वप्न में आई और उससे कहा कि तुम्हे अपने घर नहीं जाना है? तो वह कहने लगा कि सेठ जी का सारा सामान अभी तक बिका नहीं है और इन सभी सामान के अभी तक रुपए भी नहीं आए है। उसने जो भी स्वप्न देखा था वह पूरा स्वप्न सेठ जी को बता दिया और घर जाने की इजाजत मांगने लगा। मगर सेठ जी ने उसकी इस इजाजत को मना कर दिया।
माँ संतोषी की कृपा से उस आदमी के पास कई व्यापारी आए और उससे सोना चांदी और अन्य सामान खरीदने लग गए। जिन्होंने भी कर्ज लिया था वो भी समय पर कर्ज को लोटा दिया था। अब तो सेठ जी ने उसे घर जाने की अनुमति दे दी।
संतोषी माता व्रत का उद्यापन
जैसे ही यह इंसान घर पंहुचा तो उसने अपनी माँ और पत्नी को बहुत सारे रुपए दिए। उसकी पत्नी ने कहा कि मुझे माँ संतोषी के व्रत का उद्यापन करवाना है। उसकी पत्नी ने सभी लोगों को उद्यापन के लिए न्योता दे दिया। बुढ़िया की बहू ने उद्यापन की सारी तैयारी कर ली।
पड़ोस की एक स्त्री उसे सुखी देख ईष्र्या करने लगी थी| उससे उसकी ख़ुशी को देखा ही नहीं जा रहा था। तभी इस महिला ने अपने बच्चो को यह सिखा दिया। कि तुम लोग भोजन के समय खटाई मांगना मत बुलाना।
बुढ़िया के घर में माँ संतोषी की व्रत और कथा का उद्यापन समापन होते ही सभी बच्चों को भोजन के लिए बैठाया गया। तभी वहां पर बच्चे उनसे खटाई की माँग करने लग गए। मगर बुढ़िया की बहू ने उन सभी बच्चों को समझदारी से समझाया और उनको पैसे देकर बहला फुसला दिया।
किन्तु उन बच्चों ने दुकान में जाकर उन पैसों से इमली की खटाई खरीदकर खा ली और बुढ़िया की बहू को माँ संतोषी का कोप लग गया।
जिस जगह पर उसका पति काम करता है वहां के राजा ने अपने दूत को भेजकर उसको पकड़कर लाने को कहा। तभी कुछ लोगों ने इस महिला को बताया कि जब तुम उद्यापन कर रही थी। तभी कुछ बच्चों ने इमली खटाई खाई है।
तो बुढ़िया की बहू ने फिर से माँ संतोषी के व्रत और कथा के उद्यापन का संकल्प किया। संकल्प लेने के बाद वह महिला मंदिर से बाहर निकली तो उसने अपने पति को वापस आता हुआ देखा।
उसके पति ने कहा जितना भी धन कमाया है उसका कर राजा ने मांगा था। अगले शुक्रवार के दिन फिर से इस महिला ने माँ संतोषी के व्रत और कथा का पूरे विधि विधान से उद्यापन किया। इससे संतोषी मां प्रसन्न हुईं| नौमाह के बाद इनके घर में चांद सा सुंदर पुत्र हुआ। अब सास, बहू और बेटा मां की कृपा से आनंद से रहने लगे|