हिन्दू धर्म में सबसे पहले भगवान गणपति जी की पूजा करने का महत्व है। भगवान गणपति सभी देवताओं में सबसे प्रिय और लोकप्रिय देव कहे जाते है। भगवान गणेश की पूजा के बगैर किसी भी प्रकार का शुभ और मंगल कार्य शुरू नहीं किया जाता है|
जो भी व्यक्ति गणेश जी के बिना पूजा के कार्य शुरू करता है, वह किसी न किसी प्रकार के विघ्न में आ जाता है। हमारे भारत देश में सभी धर्मों में भगवान गणपति की पूजा किसी न किसी रूप से की जाती है|
भगवान गणेश जी का वर्णन हिन्दू धर्म के सभी पुराणों में किया गया है। गणेश जी सुखदाता, मंगलकारी और मनोवांछित फल को देने वाले के रूप में जाने जाते है। भगवान गणेश अग्रपूज्य, गणों के ईश गणपति, स्वस्तिक रूप और प्रणव स्वरूप हैं।
इनके स्मरण मात्र से ही सभी के संकट हर जाते है। साथ ही यह भगवान अपने भक्तो को सुख शांति और समृद्धि देते है। तो चलिए आज के लेख में हम जानते है Story of Ganesha के बारे में|
Story of Ganesha: गणेश जी को सबसे पहले क्यों पूजते है?
गजानन के जन्म के बारे में
भगवान गणेश जी के बारे में हिन्दू धर्म के पुराणों में वर्णन किया गया है। कि माँ पार्वती और भगवान शिव के दूसरे पुत्र श्री गणेश जी है। शिवपुराण में कहा गया है कि शिवा यानि पार्वती जी के देह की मैल से गणेश जी उत्पन्न हुए हैं।
भगवान शिव और माँ पार्वती के पुत्र भगवान गणपति जी को अनके नामों से भी जाना जाता है। महाराष्ट्र में भगवान गणेश जी को सिद्धिविनायक, गणपति, गजानन और बप्पा के नाम से भी जानते है।
गणेश यानि गणों में सर्वश्रेष्ठ
हिन्दू धर्म के ग्रन्थ शिवपुराण में लिखा गया है। तीनों लोक के देव भगवान शिव जी द्वारा, सबसे पहले भगवान गणेश जी की ही पूजा करने का वरदान दिया गया है। इस वरदान के चलते सभी देवी देवता की पूजा से पहले भगवान गणेश की पूजा करना अनिवार्य है। और गणपति जी को विघ्नहर्ता कहते है। क्योंकि वो सब लोगों के विघ्न को हर लेते है।
गणेश चतुर्थी पर पूजा अर्चना से होती है सौभाग्य की प्राप्ति
भगवान गणेश जी का जन्म भाद्रपद के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को हुआ था। इस दिन को पूरे भारत देशभर में गणेश चतुर्थी दिवस के नाम से जानते है। इस दिन हर व्यक्ति को व्रत करना चाहिए। गणेश चतुर्थी को बड़े ही धूम धाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा अर्चना करने से बुद्धि, समृद्धि तथा सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
गणेश जी से जुडी कुछ और बाते
- भगवान गणपति की सवारी चूहा है।
- भगवान गणेश जी को लड्डू बहुत प्रिय हैं। हिन्दू धर्म के पुराणों में भी भगवान गजानन के मोदक प्रेम के बारे में लिखा गया है।
- गणपति जी को बुद्धि और विवेक का देवता माना गया है।
- गणेश जी की पूजा में कभी भी तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता है।
- गणेश जी का प्रिय फूल लाल रंग का है।
- गणेश जी को दुर्वा (दूब) और शमी पत्र चढ़ाया जाता है।
- गणेश जी का मुख्य अस्त्र पाश और अंकुश है।
- गणेश जी का दिन बुधवार होता है।
भगवान गणेश जी के मंत्र
जब भी आप किसी कार्य को शुरू करते है तब भगवान गणेश जी के इस मंत्र को पढ़कर उनको प्रसन्न करना चाहिए।
श्री गणेश मंत्र ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।
- गणपति जी को खुश करने के लिए यह मात्र लाभकारी होता है।
ऊँ एकदन्ताय विहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्।
- गणेश जी के इस मंत्र को करने से बुद्धि प्राप्त होती है।
श्री गणेश बीज मंत्र ऊँ गं गणपतये नमः।।
- जब भी आप लोगों को सिद्धि प्राप्त करना हो, तो भगवान गणेश जी के इस मंत्र का जाप करते ही आप को सिद्धि प्राप्त हो सकती है।
एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
श्री वक्रतुण्ड महाकाय सूर्य कोटी समप्रभा निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व-कार्येशु सर्वदा॥
4. जब आप किसी प्रकार के विघ्न में हो और उसको नाश करना हो तो आप सभी गणेश जी के इस मंत्र का जाप करे।
गणपतिर्विघ्नराजो लम्बतुण्डो गजाननः।
द्वैमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिपः॥
विनायकश्चारुकर्णः पशुपालो भवात्मजः।
द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्॥
विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्नं भवेत् क्वचित्।
- जब भी आप भगवान गणेश को दीप दर्शन करना चाहते है, तो इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया |
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् |
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने |
त्राहि मां निरयाद् घोरद्दीपज्योत
- जब भी आप लोग भगवान गणेश को सिंदूर चढ़ाते है। तो इस मंत्र का उच्चारण करते हुए सिंदूर अर्पण करे।
सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् |
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ||
- भगवान गणपति को नैवेद्य चढ़ाते समय इस मंत्र को जरूर पढ़ना चाहिए –
नैवेद्यं गृह्यतां देव भक्तिं मे ह्यचलां कुरू |
ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च परां गरतिम् ||
शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च |
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद
- जब भी आप लोग पूजा के दौरान गणेश जी को पुष्प माला समर्पण करते है। तो आप लोगों को इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो |
मयाहृतानि पुष्पाणि गृह्यन्तां पूजनाय भोः ||
- गणेश जी की पूजा में आप लोग यज्ञोपवीत समर्पण कर रहे है तो आप लोगों को इस मंत्र का उच्चारण कारण बहुत महत्वपूर्ण है।
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम् | उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ||
- भगवान गणेश जी को आसन अर्पण के समय इस मंत्र का उच्चारण करे।
नि षु सीड गणपते गणेषु त्वामाहुर्विप्रतमं कवीनाम् |
न ऋते त्वत् क्रियते किंचनारे महामर्कं मघवन्चित्रमर्च ||
- गणेश पूजा के उपरान्त इस मंत्र के द्वारा भगवान् भालचंद्र को प्रणाम करना चाहिए
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय |
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ||
- भगवान गणेश के आवाहन के समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए
गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे |
निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ||
- प्रातःकाल में जब भी भगवान गणेश का स्मरण करते है। तो आप लोगों को इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए
प्रातर्नमामि चतुराननवन्द्यमानमिच्छानुकूलमखिलं च वरं ददानम् |
तं तुन्दिलं द्विरसनाधिपयज्ञसूत्रं पुत्रं विलासचतुरं शिवयोः शिवाय ||
- जब भी आप लोग गणपति जी की पूजा करते है। तो आपको इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए
खर्व स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं लम्बोदरं सुन्दरं प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम |
दंताघातविदारितारिरूधिरैः सिन्दूरशोभाकरं वन्दे शलसुतासुतं गणपतिं सिद्धिप्रदं कामदम् ||
- श्री गणेश मंत्र
ॐ गं गणपतये नम:।
- ऋद्धि मंत्र
ॐ हेमवर्णायै ऋद्धये नम:।
- सिद्धि मंत्र
ॐ सर्वज्ञानभूषितायै नम:।
- लाभ मंत्र
ॐ सौभाग्य प्रदाय धन-धान्ययुक्ताय लाभाय नम:।
- शुभ मंत्र
ॐ पूर्णाय पूर्णमदाय शुभाय नम:।
भगवान गणेश के बारे में कुछ ओर भी बाते है। गणेश पुराण में उनके वाहन की बात बताई गई है। हर युग में उनका वाहन अलग था। आइए जानते है। कि इस युग में कौन सा वाहन था।
- सतयुग में भगवान गणपति जी का वाहन सिंह था। और उस समय भगवान की 10 भुजाएं थी। इसी कारण से इनका नाम विनायक पड़ा।
- त्रेतायुग में भगवान गणेश जी मयूर वाहन पर थे। इस युग में गणपति जी के 6 भुजाएं और रंग श्वेत था। इसलिए इस युग के समय में भगवान गणेश को मयूरेश्वर भी कहा जाता है।
- द्वापरयुग के समय भगवान गणेश जी का वाहन मूषक (चूहा) है। इस युग में भगवान जी की 4 भुजाएं और उनका वर्ण लाल है। इस युग वाले लोग भगवान गणपति को गजानन के नाम से जानते है।
- कलियुग में भगवान गणेश का वाहन घोड़ा है और वर्ण धूम्रवर्ण है। गणेश जी की 2 भुजाएं हैं। और इस युग में भगवान गणेश जी धूम्रकेतु नाम से भी जाने जाते है।
श्री गणेश चालीसा
॥दोहा॥
जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल॥
जय जय जय गणपति गणराजू।
मंगल भरण करण शुभ काजू ॥
॥चौपाई॥
जै गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता॥
वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥1॥
सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥
धनि शिवसुवन षडानन भ्राता । गौरी ललन विश्वविख्याता ॥
ऋद्घिसिद्घि तव चंवर सुधारे । मूषक वाहन सोहत द्घारे ॥
कहौ जन्म शुभकथा तुम्हारी । अति शुचि पावन मंगलकारी ॥2॥
एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ॥
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥
अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥3॥
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला । बिना गर्भ धारण, यहि काला ॥
गणनायक, गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम, रुप भगवाना ॥
अस कहि अन्तर्धान रुप है । पलना पर बालक स्वरुप है ॥
बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना ॥4॥
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ॥
शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ॥
लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ॥
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ॥5॥
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो । उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो ॥
कहन लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ॥
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहाऊ ॥
पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा । बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा ॥6॥
गिरिजा गिरीं विकल है धरणी । सो दुख दशा गयो नहीं वरणी ॥
हाहाकार मच्यो कैलाशा । शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा ॥
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटि चक्र सो गज शिर लाये ॥
बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण, मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ॥7॥
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे ॥
बुद्घ परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ॥
चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई ॥
चरण मातुपितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ॥8॥
तुम्हरी महिमा बुद्घि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ॥
मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहुं कौन विधि विनय तुम्हारी ॥
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दर्वासा ॥
अब प्रभु दया दीन पर कीजै । अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ॥9॥
॥दोहा॥
श्री गणेश यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान॥
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ति गणेश ॥