Karwa Chauth Vrat Puja Vidhi: जानिए करवा चौथ व्रत की महिमा और पूजन विधि
करवा चौथ का व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह व्रत सुहागन महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।सभी महिलाए अपनी पति की लंबी आयु के लिए, उनके स्वास्थ्य और मंगलकामना के लिए यह व्रत रखती है।
करवा चौथ का व्रत शादी शुदा महिलाओं के लिए होता है। इस दिन सभी सुहागन महिला पुरे दिन बिना अन्न जल के यह व्रत करती है। इस दिन सभी महिला सूरज उदय होने से पहले ही स्नान करके वृत का संकल्प लेती है।
फिर यह सभी महिला सरगी खाती है। सरगी खाने की सामग्री, सास अपनी बहुओं को देती है। इस दिन सभी महिला शाम को तैयार होकर एक नई दुल्हन की तरह दिखाई देती है। इस दिन सभी सुहागन महिला अपनी हाथों में मेहँदी लगवाती है।
इस त्यौहार के बारे में शादीशुदा महिला अपनी सास या अपनी माँ से जानती है। इस व्रत की सही विधि विधान से पूजा न करने पर इस व्रत का सही फल नहीं मिलता है। इसलिए आज के लेख में हम आपको Karva Chauth Vrat Puja Vidhi बता रहे है।
Karva Chauth Vrat Puja Vidhi – करवा चौथ क्यों और कैसे मनाते है?
करवा चौथ का व्रत कैसे मनाया जाता है?
करवा चौथ के दिन का सभी ग्रामीण महिलाओं से लेकर शहर की सभी महिलाओं को इंतज़ार रहता है। सभी महिलाएं बड़े ही श्रद्धा भाव और उत्साह के साथ यह व्रत करती है।
इस दिन महिलाए अपने पति की लंबी आयु और अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति के लिए भगवान भालचन्द्र गणेश जी की पूजा अर्चना करती है।
करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह दिनभर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन किया जाता है। आजकल के समय में ज्यादातर महिलाए इस व्रत को अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार रखती है।
शास्त्रों पुराणों में करवा चौथ का जिक्र
यह त्यौहार सालों से चला आ रहा है। इस त्यौहार का शास्त्रों में भी उल्लेख किया गया है। कि इस त्यौहार के व्रत से सभी सुहागन महिला अपने पति के लिए लंबी आयु और उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती है। इस व्रत का पूरे विधि विधान से नहीं किया गया तो इसका परिणाम गलत मिलता है।
यह त्यौहार सिर्फ पति पत्नी तक सीमित नहीं रहता है। यह त्यौहार दोनों गृहस्थी के बीच गाड़ी के दो पहिये के समान, निष्ठा की धुरी से जुड़ा होता हैं। इसलिए उनके संबंधों पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। मगर यह व्रत पूरे परिवार के हित और कल्याण के लिए होता है।
करवा चौथ व्रत का विधि विधान
- करवा चौथ का व्रत बारह से सोलह साल तक लगातार किया जाता है। इस व्रत कि अवधि पूरी होने पर इस व्रत का उद्यापन किया जाता है।
- या फिर इस व्रत को सुहागन महिला जीवनभर रखना चाहे तो वह इस व्रत को रख सकती है। इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा व्रत नहीं है।
- इस दिन सभी सुहागन महिलाए प्रातःकाल स्नान करके अपने सुहाग की आयु के लिए, उनके आरोग्य, सौभाग्य का संकल्प लेकर दिनभर निर्जल रहते हुए यह व्रत करती है।
- इस दिन भगवान शंकर, माता पार्वती, भगवान कार्तिकेय, भगवान गजानन एवं चंद्रमा जी की पूजा अर्चना होती है।
- करवा चौथ के पूजा में बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी बनाकर इन सभी भगवानों को स्थापित करके इनकी पूजा अर्चना होती है।
- शुद्ध घी में आटे को सेंककर उसमें शक्कर अथवा खांड मिलाकर नैवेद्य के लिए लड्डू बनाया जाता है।
- काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर, उस मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे अथवा तांबे के बने हुए करवे को इस्तेमाल करना बहुत अच्छा होता है।
करवा चौथ की पूजन विधि:-
- करवों में लड्डू का नैवेद्य रखकर भगवान को नैवेद्य लगाया जाता है।
- फिर इसके बाद एक लोटा, एक वस्त्र और एक विशेष करवा दक्षिणा के रूप में अर्पित कर पूजन समापन करने के बाद करवा चौथ की व्रत की कहानी सुनाई जाती है।
- इस दिन सभी सुहागन महिला भगवान को नैवेद्य में लडडू चढाती है फिर उसके बाद एक लोटा, एक वस्त्र और एक विशेष करवा में दक्षिणा को रखते हुए उसकी पूजन अर्चना करती है।
- इस दिन सभी सुहागन महिलाएं शाम को चंद्र उदय होने पर भगवान चंद्रमा की पूजा अर्चना करने के बाद उनको अर्घ्य देती है।
- फिर इसके पश्चात ब्राह्मण, सुहागन महिलाओं और अपनी सास और ससुर के पैर छूती है।
- फिर उसके बाद इन सभी लोगों को भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों को दक्षिणा देती है।
- सभी सुहागन महिलाए अपनी सासू माँ को एक लोटा, वस्त्र और विशेष करवा भेंट कर उनसे आशीर्वाद लेती है या फिर आपकी सास इस दुनिया में नहीं है तो आप किसी अन्य महिला को यह सब भेट कर सकते है।
- यह सब करने के बाद आप खुद और परिवार के अन्य सभी सदस्य को भोजन करवा दे।
करवा चौथ में होने वाली सामग्री
- करवा चौथ के दिन आप आठ पूरियों की अठावरी और हलवा बनवाएं।
- करवा चौथ के दिन पीली मिट्टी से माता गौरी को बनाएं और उनकी गोद में भगवान गणेशजी की प्रतिमा बनाकर बैठाएं।
- माता गौरी को चुनरी ओढ़ाएं, बिंदी आदि सुहाग के सामग्री से माता गौरी का श्रृंगार करें।
- जल से भरा हुआ लोटा रखें।
- करवे में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दे। और उसके ऊपर दक्षिणा रख दे।
- करवे में रोली से स्वस्तिक बना दे।
- भगवान गणेश और माता गोरी की पूजा करने पर अपने पति की लंबी आयु की कामना करे।
- करवा पर तेरह बिंदी रखें और गेहूं या चावल के तेरह दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
- कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासू माँ के पैर छूकर आशीर्वाद लें और उनका करवा दे दें।
- रात में चन्द्रमा निकलने के बाद उसको छलनी से उसे देखें और भगवान चन्द्रमा को अर्ध्य दें।इसके बाद अपने पति से आशीर्वाद लेकर उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर ले।
हिन्दू धर्म में जितने भी व्रत है।यह व्रत उन व्रतों में सबसे अलग व्रत है।। करवा चौथ का भी उजमन किया जाता है। इस उजमन में एक थाली में तेरह जगह चार चार पूड़ियां रखकर उनके ऊपर सूजी का हलवा रखा जाता है। इसके ऊपर साड़ी ब्लाउज और रुपये रख दे। हाथ में रोली, चावल लेकर थाल के चारों और हाथ घुमाने के बाद यह बायना अपनी सासू माँ को दे दे। फिर इसके बाद तेरह सुहागन महिलाओं को भोजन कराने के बाद उनके माथे पर बिंदी लगाए और उनको सुहाग की वस्तुएं देकर विदा करे।