हम सब जानते हैं की महाराष्ट्र और आस पास के इलाकों में गणपति पूजन का बहुत क्रेज रहता है। ख़ास कर के गणेश चतुर्थी के समय के समय तो माहौल बहुत ज्यादा भक्तिमय हो जाता है। महाराष्ट्र में गणपति पूजा की जड़ें बहुत प्राचीन काल से मजबूत हैं। इसीलिए महाराष्ट्र में गणपति के अष्टविनायक रूप के आठ अलग अलग मंदिर बने हुए है। सनातन वैदिक धर्म में Ashtavinayak Temples का बहुत महत्त्व माना जाता है।
ये सभी आठ गणेश मंदिर Ashtavinayak Route में आते हैं जिसमे से जहाँ 6 मंदिर पुणे जिले में स्थित हैं और वहीं 2 मंदिर रायगढ़ जिले में है। Ashtavinayak Name दो शब्दों से मिल कर बना है, एक अष्ट जिसका मतलब होता है आठ और दूसरा विनायक जो गणेश भगवान का एक नाम है। इन्ही के मेल से बनता है अष्टविनायक और उनके आठ महत्वपूर्ण मंदिर।
भगवान गणेश या फिर श्री विनायक जी को सनातन धर्म में बुद्धि तथा विद्या के आदि देवता के रूप में माना जाता है। गणेश देवों में “प्रथम आराध्य” भी कहे जाते हैं, इसका अर्थ हुआ की किसी भी देवता की पूजा हो या फिर कोई भी यज्ञ अनुष्ठान हो उसमे सर्वप्रथम पूजा भगवान गणेश की होती है। कहा जाता है की भगवान गणेश की प्रथम पूजा ना करने से वो पूजा, यज्ञ, अनुष्ठान अधूरी मानी जाती है।
आज के वक़्त में महाराष्ट्र के साथ साथ देश के बहुत सारे दुसरे भागों में भी गणेश चतुर्थी का पर्व बहुत हीं धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। गणेश भक्तों का ऐसा मानना होता है की हर व्यक्ति को अपनी जिंदगी में एक बार भगवान् अष्टविनायक के सभी आठों मंदिरों की यात्रा कर के Ashtavinayak Darshan ज़रूर करनी चाहिए। आज के लेख में पढ़ते हैं Ashtavinayak के सभी मंदिरों के बारे में विस्तार से।
Ashtavinayak: जाने अष्टविनायक के सभी आठ मुख्य मंदिरों के महत्व
श्री मयूरेश्वर मंदिर (Shree Mayureshwar Ganapati Temple)
- पुणे जिले के मोरगाँव इलाके में अवस्थित है मयूरेश्वर विनायक का महत्वपूर्ण मंदिर । इस मंदिर को मोरेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
- यह मंदिर पुणे शहर से लगभग 80 किलोमीटर दूर अवस्थित है। इस मंदिर के संरचना की बात करें तो इसके चारों कोनों में मीनारें हैं और लंबे लंबे पत्थरों की दीवारें हैं।
- इस मंदिर में चार अलग अलग द्वार भी हैं जिनका नाम चारों युगों पर आधारित है। ये नाम क्रमशः सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा कलियुग हैं।
- यहां पर भगवान गणेश की प्रतिमा बैठी हुई अवस्था में अवस्थित हैं और प्रतिमा की सूंड बाएं दिशा में है। इसके अलावा उनकी चार भुजाएं है और तीन नेत्र भी हैं। यहां एक नंदी की प्रतिमा भी है।
- कथाओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है की इसी जगह पर भगवान विनायक ने मोर पर सवार हो कर युद्ध के दौरान सिंधुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। इसी वजह से इस स्थान का नामाकरण मयूरेश्वर हुआ।
सिद्धिविनायक मंदिर (Siddhivinayak Temple)
- अहमदनगर जिले में अवस्थित सिद्धटेक के सिद्धिविनायक मंदिर पुणे शहर से 200 किलोमीटर की दूरी पर भीम नदी के किनारे है।
- यह मंदिर लगभग 200 साल पुराना है और इसे पेशवा काल में बनाया गया था । इस मंदिर का मुख्य मंडप इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने बनवाया था ।
- कथाओं के अनुसार सिद्धटेक में हीं भगवान विष्णु ने बहुत सारी सिद्धियां प्राप्त हुई थीं।
- इसी सिद्धटेक के एक पहाड़ की शिखर पर सिद्धिविनायक मंदिर बना हुआ है जसका मुख्य द्वार उत्तर दिशा की तरफ है।
- इस विशेष मंदिर की परिक्रमा पूरी करने के लिए भक्त गण पहाड़ की यात्रा करते हैं।
- सिद्धिविनायक मंदिर के गर्भगृह में गणेशजी की प्रतिमा की ऊंचाई 3 फीट तथा चौड़ाई ढाई फीट है। यहां भगवान गणेश की सूंड सीधे हाथ की तरफ अवस्थित है।
बल्लालेश्वर मंदिर (Ballaleshvar Temple)
- Ashtavinayak Ganpati के मंदिरों में आने वाला यह मंदिर रायगढ़ जिले के पाली गांव में अवस्थित है।
- इस मंदिर का नामाकरण भगवान गणेश के एक अनन्य भक्त बल्लाल के नाम पर हुआ है।
- बल्लाल के परिवार ने बल्लाल की अथाह गणेश भक्ति से परेशान हो कर उसे गणपति की मूर्ती के साथ वन में फेंक दिया था।
- वन में भी बल्लाल ने सिर्फ भगवान गणपति को सुमिरन करते हुए अपना सारा वक़्त बिता दिया था। उसकी इतनी अगाध भक्ति से खुश हो कर गणेश जी ने उसे इसी स्थान पर दर्शन दिए और फिर इसी कारण से बाद में भक्त बललाल के नाम पर यहाँ मंदिर निर्माण हुआ।
- बता दें यह मंदिर मुंबई पुणे हाइवे पर नागोथाने से 11 किलोमीटर दूर में स्थित है।
वरदविनायक मंदिर (Varadvinayak Temple)
- अब नंबर आता है रायगढ़ के कोल्हापुर में स्थित वरदविनायक मंदिर का । रायगढ़ जिले में खोपोली इलाके के पास महाड नामक गांव में यह मंदिर अवस्थित है।
- मराठी भाषा में वरद विनायक का मतलब होता है “वरदान देने वाले” । माना जाता है की इस मंदिर में आने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
- इस मंदिर में विराजित गणपति की मूर्ती साल 1690 समीप के एक तालाब से मिली थी। इस मंदिर को सूबेदार रामजी महादेव ने साल 1725 में बनवाया था।
- इस मंदिर की खासियत है नंददीप नामक दीपक जो साल 1892 से कभी बुझा नहीं है।
- इस मंदिर में अवस्थित मूर्ती तथा यहाँ का परिसर बहुत पुराना है। यह एकमेव अष्टविनायक मंदिर कहलाता है जहाँ गणेश भक्त खुद मूर्तियों के नजदीक जा कर पूजा अर्चना कर सकते हैं।
- मंदिर के गर्भगृह में दो मूर्तिया रखी हैं जिनमे एक श्री वरद विनायक की हैं जिनकी सूँड़ बायीं दिशा में है और दूसरी संगमरमर से निर्मित मूर्ती है जिसकी सूँड़ दायीं दिशा में है।
चिंतामणी मंदिर (Chintamani Temple)
- यह मंदिर थेऊर नामक एक गांव में अवस्थित है जो पुणे शहर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर है।
- थेऊर गांव में का यह अष्टविनायक मंदिर मूला, मुठ और भीम नाम की तीन नदियों के संगम के समीप अवस्थित हैं। इस मंदिर का निर्माण माधवराओ पेशवा ने करवाया था।
- भक्तों की ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में अगर कोई विचलित मन के साथ आता है तो उसकी सारी उलझने यहाँ पर दूर हो जाती हैं और उसे शांति मिल जाती है।
- इस मंदिर से भी एक अहम कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार यहाँ पर भगवान ब्रह्मा ने स्वयं अपने विचलित मन को शांत किया था और शांति के लिए उन्होंने इस स्थान पर तपस्या की थी।
गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर (Girijatmaj Ashtavinayak Temple)
- महाराष्ट्र के लेण्याद्री नामक एक गांव में अवस्थित है यह गिरिजात्मज अष्टविनायक मंदिर।
- इस मंदिर के नाम का मतलब होता है ‘गिरिजा के आत्मज’ अर्थात माता पार्वती के पुत्र अर्थात साक्षात भगवान गणेश।
- यह अष्टविनायक मंदिर पुणे-नासिक राजमार्ग पर अवस्थित है। पुणे शहर से इसकी दूरी लगभग 90 किलोमीटर की है।
- इसका निर्माण लेण्याद्री नामक पहाड़ पर अवस्थित बौद्ध गुफाओं के स्थान पर किया गया है।
- इस पहाड़ पर कुल 18 बौद्ध गुफाएं बनी हुई हैं जिनमे से 8वीं गुफा में गिरजात्मज विनायक के मंदिर हैं।
- इन सभी गुफाओं को सम्मलित रूप से गणेश गुफा के नाम से भी जाना जाता है।
- पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर तक जाने के लिए आपको 300 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।
- इस पूरे मंदिर को एक ही बड़े से चट्टान को काटकर बनाया गया है।
विघ्नेश्वर अष्टविनायक मंदिर (Vighneshwar Ashtavinayak Temple)
- यह मंदिर जूनर तालुका में के ओजार में बहने वाली कुकड़ी नदी के किनारे अवस्थित है।
- पुणे शहर से इस मंदिर की दूरी 80 किलोमीटर है और यह मंदिर पुणे-नासिक राजमार्ग पर स्थित है।
- यहाँ की लोककथाओं के अंतर्गत विघनासुर नाम का एक असुर था जिसने संतों और ऋषियों को परेशान कर रखा था।
- भगवान गणेश ने इसी स्थान पर उस राक्षस का वध कर के ऋषिओं की मदद की थी।
- तभी से यहाँ मंदिर विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता तथा विघ्नहार के रूप में जाना जाने लगा।
महागणपति मंदिर (Mahaganapati Temple)
- पुणे के नजदीक एक छोटा सा गांव है, नाम है राजणगांव । इसी गांव में महागणपति मंदिर अवस्थित है। इस मंदिर का निर्माण माधवराओ पेशवा ने करवाया था।
- इस मंदिर के गर्भगृह में महागणपति का दिव्य स्वरुप अवस्थित है जिसे गणेश भगवान का सबसे शक्तिशाली रूप कहा जाता है। इस मूर्ती के कुल 10 सूँड़ और 20 हाथ है।
- कथाओं के अनुसार त्रिपुरासुर से युद्ध करने जाने से पहले स्वयं भगवान शिव ने महागणपति के इस स्वरुप की आराधना की थी।
- इसलिए इस स्थान को त्रिपुररिवदे महागणपति के नाम से भी जाना जाता है।
- जब सूर्य दक्षिणायन होता है तह सूर्य की किरणे महागणपति की मूर्ती पर पड़ती है।
- इस मंदिर का अगला हिस्सा पूर्व दिशा की तरफ है और इसके सामने एक भव्य प्रवेश द्वार भी बना हुआ है। प्रवेश द्वार पर जय-विजय जिन्हे वैकुण्ठ का द्वारपाल माना जाता है की मूर्तियां हैं।
- इस मंदिर का आरम्भिक निर्माण 9-10वीं सदी के मध्य करवाया गया था ऐसा माना जाता है।
- यहां अवस्थित गणपति की प्रतिमा को माहोतक के नाम से भी जाना जाता है।
- यहाँ की ऐसी मान्यता है की यहाँ की गणपति की मूल प्रतिमा को विदेशी आक्रमणकारियों से बचाने के लिए मंदिर के तहखाने में छुपा कर रखा गया है।
तो ये थे अष्टविनायक के नाम से मशहूर महाराष्ट्र के आठ प्रमुख गणेश मंदिर जहाँ भगवान गणपति के दर्शन पा कर आपका जीवन धन्य हो जाता है। अपने जीवनकाल में एक बार इन सभी मंदिरों ज़रुर कर लेना चाहिए। ख़ास कर के अपने माता पिता को इन मंदिरों के दर्शन ज़रूर करवाने चाहिए। इन मंदिरों का विशेष महत्व होता है और गणेश चतुर्थी के समय इन मंदिरों में भक्तों की बहुत ज्यादा भीड़ बनी रहती है।