Hellp Syndrome in Pregnancy: प्रेग्नेंसी के दौरान हेल्प सिंड्रोम से माँ और शिशु दोनों को खतरा
गर्भावस्था एक ऐसा समय होता है जब महिलाओं की विशेष देखभाल करने की जरूरत पड़ती है क्योंकि इस दौरान उनके शरीर के बीमारियों से परेशान हो जाने के चांसेस बढ़ जाते हैं। इस दौरान कई महिलाओं को अनेक तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जिसमे से एक है हेल्प सिंड्रोम की समस्या।
हेल्प सिंड्रोम दरअसल एक रक्त से संबंधित बीमारी होती है। जिसके कारण कुछ गर्भवती महिलाओ को रक्त की कोशिकाओं में समस्याएं उत्पन्न हो जाती है । इन समस्यायों के उत्पन्न हो जाने के बाद रक्त में मौजूद प्लेटलेट्स तथा लाल रक्त कणिकाएं खुद ब खुद नष्ट होने लग जाते हैं। पर पीड़ित को इन सब का पता तब लगता है जब उसे झटके आने लगते हैं या फिर वो बेहोश हो जाती है।
हेल्प सिंड्रोम गर्भावस्था की एक जटिलता होती है। जिसे आमतौर पर पूर्व-एक्लम्पसिया का एक प्रकार या समस्या माना जाता है। इस तरह का सिंड्रोम गर्भावस्था के 37वें सप्ताह के पश्चात हीं देखने को मिलता है या फिर डिलीवरी होने के एक वीक बाद भी यह हो सकता है।
ऐसा ज़रुरी नहीं है की यह समस्या हर गर्भवती को हो। इस समस्या से कुछ ही गर्भवती महिला पीड़ित होती है। यह सिंड्रोम 0.2 से 0.6 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को ही प्रभावित करता है। जानते है Hellp Syndrome in Pregnancy के बारे में विस्तार से।
Hellp Syndrome in Pregnancy: जानिए इसके लक्षण, कारण और निदान
हेल्प सिंड्रोम के HELLP का मतलब होता है
- H- मतलब हेमोलायसिस (hemolysis) अर्थात रक्तापघटन: इसमें लाल रक्त कणिकाओं में टूटन आ जाती है।
- EL- मतलब एलिवेटेड लिवर एंजाइम होता है।
- LP- मतलब लो प्लेटलेट्स काउंट होता है।
हेल्प सिंड्रोम का क्या है इतिहास
- हेल्प सिंड्रोम की पहचान साल 1982 में डॉ लुई वेंस्टीन द्वारा एक विशिष्ट क्लिनिकल इकाई के रूप में की गई थी।
- साल 2005 के एक लेख में, डॉ वेंस्टीन ने लिखा है कि एक महिला की अस्पताल में प्रसवोत्तर मौत, जो कि हेमोलिसिस, थ्रोम्बोसाइटोपेनिया, और हाइपोग्लाइसीमिया की वजह से हुई थी, उसे चिकित्सा साहित्य की समीक्षा करने और इसी तरह की महिलाओं के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए प्रयोग किया गया ।
- उन्होंने कहा कि हेल्प सिंड्रोम की विशेषताओं के साथ मामलों की रिपोर्ट 1954 के आरंभ में की गई थी।
हेल्प सिंड्रोम होने के कारण
- बहुत कम उम्र और बहुत ज्यादा उम्र हो जाने के बाद गर्भधारण करने पर हीं ये समस्या ज्यादातर देखने को मिलती हैं।
- जो महिलाएं 35 साल की उम्र के बाद गर्भधारण करती है या फिर जो महिलाएं 20 साल से कम उम्र में गर्भधारण करती है उनमे हेल्प सिंड्रोम होने की सम्भावना ज्यादा पायी जाती है।
- आपको बता दें की अभी तक इस सिंड्रोम के गर्भवती महिलाओं में होने के मुख्य कारणों का सही पता नहीं चल पाया है।
- उच्च रक्तचाप वाली महिलाओं में भी ये समस्या होने की सम्भावना ज्यादा बढ़ जाती है ।
हेल्प सिंड्रोम के लक्षण
हेल्प सिंड्रोम के होने के कई अलग अलग लक्षण हो सकते हैं। आइये जानते हैं उनमे से कुछ लक्षणों के बारे में जो निम्न है
- इसमें सिर दर्द की समस्या
- मतली और उल्टी
- ऊपरी दाएं पेट में दर्द होना
- थकान का होना
- पीठ दर्द आदि होता है।
उपर्युक्त सभी लक्षण सामान्यतः गर्भावस्था के दौरान हीं देखे जाते हैं । इसके अतिरिक्त हेल्प सिंड्रोम के अन्य लक्षणों में शामिल है
- खून की उल्टी
- देखने मे दिक्क्त
- उच्च रक्तचाप
- मूत्र में प्रोटीन
- एडेमा (सूजन)
- गंभीर सिरदर्द
- खून का बहना
हेल्प सिंड्रोम का निदान कैसे किया जाता है?
- सबसे पहले तो ये ध्यान देना चाहिए की कहीं इस सिंड्रोम के लक्षण तो मरीज में नहीं देखने को मिल रहे।
- अगर हेल्प सिंड्रोम के लक्षण देखने को मिलते हैं तो इसकी जाँच के लिए सबसे पहले गर्भवती महिला का रक्त परिक्षण किया जाता है।
- हेल्प सिंड्रोम के बारे में कहा जाता है की ये 9वें महीने या फिर संतान उत्पत्ति के बाद होता है परन्तु कभी कभी यह तीसरे तिमाही से पहले भी हो सकता है। लेकिन यह दुर्लभ होता है।
- यह प्रसव होने के 48 घंटों के भीतर भी हो सकता है, हालांकि इसके लक्षणों के पूरी तरह स्पष्ट होने के लिए 7 दिन तक लग सकते हैं।
- हेल्प सिंड्रोम का निदान करते समय प्रोटीन की जांच के लिए रक्तचाप के माप और मूत्र परीक्षण की निगरानी की जाती है।
हेल्प सिंड्रोम से होने वाले कॉम्प्लीकेशन्स
- हेल्प सिंड्रोम के होने से लीवर हैमरेज होने की संभावना बढ़ जाती है।
- इसके हो जाने के कारण महिला को गर्भावस्था के दौरान और डिलीवरी के पश्चात भी परेशानियां आने की पूरी संभावना बनी रहती है।
- प्रसव के पश्चात् क्लॉटिंग डिसआर्डर होने की सम्भावनाये भी इस समस्या के कारण बढ़ जाती है जिसके कारण महिला को जरुरत से ज्यादा रक्त स्राव जैसी समस्याओं से भी दो चार होना पड़ सकता है ।
- हेल्प सिंड्रोम की समस्या होने पर एक्सट्रीम केस में गुर्दे काम करना बंद कर देते है।
- इससे पल्मोनरी एडीमिया होने की संभावना भी बढ़ जाती है जिसके कारण फेफड़ों में तरल पदार्थ जमा हो जाता है।
हेल्प सिंड्रोम का उपचार
- हेल्प सिंड्रोम का एकमात्र प्रभावी उपचार है गर्भवती महिला के गर्भ से बच्चे की त्वरित डिलेवरी करवा देना होता है
- हेल्प सिंड्रोम के उपचार के लिए कई तरह की दवाओं की जांच की की गई है और की आज भी की जारी है, लेकिन आज तक इसकी सही दवा ने निर्माण पर चिकित्सा वैगानिकों के बीच विरोधाभास है।
- इसके इलाज के लिए मैग्नीशियम सल्फेट के इस्तेमाल की बात की गई है जो कैंसर के जोखिम को कम करता है और साथ हैं एक्लम्पसिया के प्रगति को भी कम कर देता है।
- रक्तस्रावी प्रत्यारोपण को फिर से भरने के लिए प्रसारित इंट्रावस्कुलर कोयग्यूलेशन के ताजा जमे हुए प्लाज्मा के साथ इलाज किया जाता है, जिसके कारण एनीमिया को ब्लड ट्रांसफ्यूजन की आवश्यकता हो सकती है।
इस लेख में आपने पढ़ा गर्भावस्था के दौरान होने वाली एक गंभीर समस्या हेल्प सिंड्रोम के बारे में। अगर आप गर्भवती है और आपको भी इसके लक्षण नजर आते हैं तो इसका शुरूआती समय में हीं इलाज शुरू कर दें।